Home News National इस तरह हुई डाबर कंपनी की शुरुआत, नाम के पीछे की कहानी

इस तरह हुई डाबर कंपनी की शुरुआत, नाम के पीछे की कहानी

डाबर आज जानी-मानी कंपनी है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसकी शुरुआत आयुर्वेदिक दवाओं से हुई थी. डाबर की शुरुआत डॉ. एसके बर्मन ने 1884 में की थी.

1907 में डॉ. बर्मन की मौत के बाद उनके बेटे सीएल बर्मन ने विरासत को आगे बढ़ाया और फिर फैक्ट्री को दिल्ली में शिफ्ट करने का फैसला लिया. कंपनी ने दवाओं से अलग हटकर प्रोडक्ट बनाने शुरू किए. इनमें चार कैटैगरी में बांटा गया- हेल्थ केयर प्रोडक्ट, हेयर केयर प्रोडक्ट, स्किन केयर प्रोडक्ट और फूड प्रोडक्ट. कोलकाता से जो कंपनी का सफर शुरू हुआ था उसका दायरा दिल्ली में समय के साथ बढ़ता गया. 1986 में डाबर एक पब्लिक कंपनी बन गई और नाम रखा गया डाबर इंडिया लिमिटेड.

डाबर ने कई कंपनियों का अधिग्रहरण किया. 2005 में 143 करोड़ रुपये से ओडोनिल बनाने वाली बल्सरा ग्रुप का अधिग्रहण किया. 2008 में डाबर ने फेम केयर फार्मा को खरीदा. 2010 में डाबर ने होबी कॉस्मेटिक कंपनी को खरीदा यह पहली विदेशी कंपनी थी जिसका डाबर ने अधिग्रहण किया था. डाबर ने 2011 में प्रोफेशनल स्किन केयर मार्केट में एंट्री की और अजंता फार्मा की 30-प्लस का अधिग्रहण किया.

डॉ. बर्मन आयुर्वेद विशेषज्ञ थे. उन्होंने कोलकाता से अपनी प्रैक्टिस की शुरुआत की. इस तरह पूरी फैमिली पंजाब से कोलकाता शिफ्ट हो गई. 80 के दौर में उन्होंने कालरा, कब्ज और मलेरिया की दवाओं का फॉर्मूला तैयार करने पर काम करना शुरू किया. दवा बनाने के बाद डॉ. बर्मन साइकिल से घूम-घूमकर इन्हें बेचना शुरू किया.

उनके मरीजों ने उन्हें डाबर कहना शुरू कर दिया था. जिसमें डॉक्टर का ‘डा’ और बर्मन में ‘बर’ शामिल था. इस तरह उन्हें डाबर कहा जाने लगा. धीरे-धीरे उन्होंने दवाओं पर और काम करना शुरू किया और पहली रिसर्च यूनिट की स्थापना की, जिसका नाम रखा डाबर.

250 से अधिक हर्बल प्रोडक्ट बना रही कंपनी

डाबर वर्तमान में 250 से अधिक हर्बल प्रोडक्ट बना रही है. कंपनी के पास अपने 8 ब्रैंड हैं. कंपनी हेल्थ सेक्टर के तहत च्यवनप्रास, शहद, पुदीनहरा, लाल तेल और हनीटस समेत कई प्रोडक्ट तैयार कर रही है. वहीं, पर्सनल केयर सेक्टर में आंवला मेल और रेड पेस्ट बना रही है.

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