Home Other general knowledge आज हे कविगुरू रबीन्द्रनाथ टैगोर की 161वीं जन्मजयंती (Rabindranath Tagore Jayanti)

आज हे कविगुरू रबीन्द्रनाथ टैगोर की 161वीं जन्मजयंती (Rabindranath Tagore Jayanti)

Rabindranath Tagore Jayanti

Rabindranath Tagore
Rabindranath Tagore

नोबेल पुरस्कार विजेता(Rabindranath Tagore) और भारत के राष्ट्रगान जन-गण-मन के रचियता कविगुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर(Rabindranath Tagore Jayanti) की आज (शनिवार) 161वीं जयंती है। रविंद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई सन् 1861 में हुआ था. यह कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में पैदा हुए थे. रबीन्द्रनाथ के बचपन का नाम रबी था।

रबीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही घर-परिवार में साहित्यिक माहौल मिला। यही वजह थी कि उनकी भी रुचि इसी फील्ड में थी। रबीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कहानियां और कविताएं लिखने का शौक था।

जानिए रबीन्द्रनाथ टैगोर ( Rabindranath Tagore Jayanti ) के जीवन की कुछ रोचक बाते:

  1. उन्होंने महज 8 साल की उम्र से ही कविता-कहानियां लिखना शुरू कर दी थीं।
  2. सन् 1913 में रविंद्रनाथ टैगोर को अपनी काव्य रचना गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था।
  3. महात्मा गांधी ने रबीन्द्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ की उपाधि प्रदान की थी।
  4. रबीन्द्रनाथ टैगोर को भारत ही नहीं बल्कि बांग्लादेश के राष्ट्रगान को लिखने का श्रेय भी जाता है। उन्होंने ‘आमार सोनार बांग्ला’ लिखा, जो कि बांग्लादेश का राष्ट्रगान है।
  5. 16 साल की उम्र में उनकी पहली लघुकथा पब्लिश हो गई थी।
  6. रबीन्द्रनाथ टैगोर का विवाह 1883 में मृणालिनी देवी से हुआ।
  7. 1902 में महज 25 साल की उम्र में बीमारी के चलते मृणालिनी देवी की मौत हो गई।
  8. गीतांजलि बांग्ला भाषा में थी, लेकिन बाद में उन्होंने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया।
  9. रबीन्द्रनाथ टैगोर को कविगुरू और विश्वकवि के नाम से भी जाना जाता है।
  10. रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की। यहां पारंपरिक तरीके से गुरु-शिष्य परपंरा का पालन करते हुए शिक्षा दी जाती थी।
  11. रबीन्द्रनाथ टैगोर के घरवाले चाहते थे कि उनका बेटा लंदन में उच्च शिक्षा प्राप्त कर बैरिस्टर बने। इसके लिए उन्हें इंग्लैंड भेजा गया, लेकिन वहां उनका दिल नहीं लगा। इसके बाद वो पढ़ाई बीच में ही छोड़कर भारत लौट आए। उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ी थी, इसलिए उन्हें डर था कि कविताएं लिखने का शौक घरवालों को अच्छा नहीं लगेगा। यही वजह थी कि रबीन्द्रनाथ ने अपनी पहली किताब बांग्ला नहीं बल्कि मैथिली भाषा में लिखी थी।
  12. 7 अगस्त, 1941 को उनका निधन हो गया था।

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