होलिका की स्थापना एवं होली की पूर्व रात्रि जलाने के समय एवं विधि-विधान के संबंध में शास्त्रों में विशेष सावधानी का उल्लेख किया गया है. होलिका जलाते समय भद्रा काल से रहित समय में ही आग लगाने का निर्देश दिया गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि भद्रा में होलिका जलाने पर संबंधित क्षेत्र पर संकट आता है.|
सनातन धर्म में होली का विशेष महत्व है. वातावरण में जहां होली की महक घुलने लगी है, वहीं बाजार में इसकी रौनक भी छाने लगी है. आम तौर पर देखा जाता है कि गांव-मुहल्ले, टोले में लोग होलिका दहन की तैयारी काफी पहले से शुरू कर देते हैं. जलावन के लिए सूखे पेड़ की टहनियां, झाड़-झंकर आदि इकट्ठा करते हैं, मगर इसमें एक बात का ध्यान नहीं रखते, जो धार्मिक दृष्टिकोण से अनुचित तो है ही, पर्यावरण के लिहाज से भी नुकसानदेह है|
रंगों के पर्व होली के एक दिन पहले होलिका जलाने के निमित्त शिवरात्रि पर्व से ही होलिका की स्थापना शुरू हो गयी है. होलिका के प्रतीक स्वरूप आसपास उपलब्ध पेड़ लगाये जाते हैं. बहुत से स्थानों पर रंगभरी एकादशी को इसकी स्थापना होती है. होलिका की स्थापना एवं होली की पूर्व रात्रि जलाने के समय एवं विधि-विधान के संबंध में शास्त्रों में विशेष सावधानी का उल्लेख किया गया है.|
निर्णय सिंधु में होलिका दहन व पूजन को लेकर निर्देश
इसे लेकर निर्णय सिंधु में स्पष्ट उल्लेखित है कि स्थापना और जलाने के समय विधिवत पूजन हो. जलाते समय भद्रा काल से रहित समय में ही आग लगाने का निर्देश दिया गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि भद्रा में होलिका जलाने पर संबंधित क्षेत्र पर संकट आता है, इसके अलावा होलिका-पूजन की विधि भी बतायी गयी है. महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अक्सर लोग इसमें कूड़ा करकट, टायर-ट्यूब, प्लास्टिक आदि डालने लगते हैं, जो धार्मिक दृष्टिकोण से बिल्कुल अनुचित है, इसमें गोबर की उपली, सरसों के उबटन का अवशेष डालना शास्त्र सम्मत बताया गया है.|