Home News religious रतन राजपूत की आध्यात्मिक यात्रा: प्रेमानंद महाराज से मिलकर खुलेआम किये राज़!

रतन राजपूत की आध्यात्मिक यात्रा: प्रेमानंद महाराज से मिलकर खुलेआम किये राज़!

Actress Ratan Rajput Meet Premanand ji Maharaj

वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज अपने विचारों की वजह से काफी लोकप्रिय हो चुके हैं. लोग इनके दर्शन को बेताब रहते हैं. आधी रात को जब वो वृंदावन की सड़कों पर निकलते हैं तो दर्शन करने वालों की लाइन लग जाती है. व‍िराट कोहली-अनुष्‍का शर्मा से लेकर कई जाने माने सेलीब्र‍िटी प्रेमानंद महाराज के सामने अपने सवालों के जवाब लेने पहुंचते हैं. हाल ही में टीवी की दुनिया की प्रस‍िद्ध एक्‍ट्रेस रतन राजपूत भी बाबा के दरबार में उनसे म‍िलने पहुंचीं. यहां पहुंचकर रतन राजपूत ने प्रेमानंद महाराज को बताया कि वो प‍िछले 5 सालों से आध्‍यात्‍म की यात्रा पर हैं और अब उनकी रुच‍ि अभ‍िनय में नहीं रही है. एक्‍ट्रेस रतन राजपूत सीरियल ‘अगले जनम मोहे ब‍िट‍िया ही कीजो’ जैसे शो से खूब ह‍िट हुई थीं.|

रतन यहां प्रेमानंद जी के आश्रम में हरे रंग के ड्रेस और केसरी रंग की चुनरी ओढ़कर पहुंचीं. रतन राजपूत ने पूछा, ‘मैं प‍िछले 5 सालों से आध्‍यात्‍म‍िक यात्रा पर हूं और, जब से आध्‍यात्‍म की तरफ गई हूं अभ‍िनय में रुचि नहीं रही. तो जानना चाहती हूं कि अभ‍िनय और अध्‍यात्‍म दोनों में एक ही स्‍थ‍िति कैसे रखूं?’ एक्‍ट्रेस के इस सवाल के जवाब में प्रेमानंद जी महाराज ने कहा, ‘जब हमको पता चल जाए कि नोट नकली है तो उसे उठाने में भी हमें रुचि नहीं रहती. आध्‍यात्‍म भी सत्‍य है और जब आप सत्‍य जान लें तो असत्‍य में या अभ‍िनय करने में रुचि कैसे रह जाएगी. ये होता है. लेकिन यहां ये समझने की जरूरत है कि जब आप ये समझ लेते हैं कि आपको सेवा करनी है और अभिनय एक सेवा है, तब आपको अभ‍िनय करने में कोई परेशानी नहीं होगी.’

प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं, ‘मुझे नाटक करना होता है गुरू का. ये एक नाटक मंच है, न तो यहां कोई गुरू है न कोई श‍िष्‍य. मुझे पता है कि एक ही परमात्‍मा सब रूपों में है. पर मुझे अभ‍िनय द‍िया गया है गुरू का और आपको शिष्‍य का. अब हम बहुत अच्‍छे ढंग से अभ‍िनय करेंगे, क्योंकि इस अभ‍िनय का परिणाम होगा, मेरे ईष्‍ट की प्रसन्नता. तो हम सब नाटक करेंगे, आपको डांटेंगे, फटकारेंगे, समझाएंगे लेकिन अं‍दर परमात्‍मा एक है जो आपके भीतर बैठा है, जो मेरे भीतर बैठा है. तो आप भी ऐसे अभ‍िनय करो. मैं अपने ईष्‍ट को र‍िझाने के लि‍ए अभ‍िनयक कर रही हूं. मेरे इष्‍ट ने मुझे अभ‍िनय की योग्‍यता दी है, मुझे अभ‍िनय करना है, इससे मेरा ईष्‍ट खुश होगा. न पैसा न लाभ… अगर ये सोच कर अभ‍िनय करोगी, देखो अभ‍ी अभ‍िनय में रचि आ जाएगी. पर है ये बहुत व‍िवेक का व‍िषय.’

प्रेमानंद महाराज आगे रतन राजपूत को समझाते हैं, ‘आप जब तक इस संसार के स्‍वांग को स्‍वांग मानकर अभ‍िनय करेंगी और मन में आध्‍यात्‍म स्‍थ‍ित होगा तो मन प्रसन्न रहेगा. अभी आपका आध्‍यात्‍म स‍िर्फ जाग्रत हुआ है, इसलि‍ए ये भटकाव है. जब आध्‍यात्‍म में स्‍थिर हो जाएंगी तो कुछ भी सत्‍य-असत्‍य नहीं लगेगा|

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