जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि:
जादव “मोलाई” पायेंग का जन्म 1963 में असम के गोलाघाट जिले में स्थित माजुली द्वीप के एक छोटे से गांव में हुआ था। माजुली ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप है, जो समय के साथ लगातार भूमि कटाव और बाढ़ से प्रभावित होता रहा है।
उनका जन्म एक गरीब मिसिंग जनजाति के परिवार में हुआ, जो असम की एक प्रमुख आदिवासी जनजाति है। उनका पालन-पोषण बेहद साधारण परिस्थितियों में हुआ, जहां उनके परिवार का मुख्य पेशा कृषि था। उनके माता-पिता पारंपरिक खेती और मछली पकड़ने का काम करते थे। चूंकि वे एक आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते थे, इसलिए बचपन से ही उनका प्रकृति से गहरा जुड़ाव रहा।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन:
जादव पायेंग की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में ही हुई। हालांकि, संसाधनों की कमी और पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उनकी स्कूली शिक्षा अधिक आगे नहीं बढ़ पाई।
शिक्षा के दौरान ही 1979 में उन्होंने पहली बार एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या देखी, जिसने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। माजुली द्वीप में आए भीषण बाढ़ के कारण हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि बह गई, और बड़ी संख्या में पेड़ नष्ट हो गए। इस प्राकृतिक आपदा के कारण वहां की स्थानीय जैव विविधता, वन्यजीव और लोगों की आजीविका पर गहरा असर पड़ा।
उस समय मात्र 16 वर्ष के जादव पायेंग ने महसूस किया कि यदि वनस्पतियां और वृक्ष नहीं बचे, तो यह द्वीप पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा। उन्होंने अपने बुजुर्गों से इस समस्या का हल पूछा, तो उन्हें बताया गया कि पेड़ ही मिट्टी के कटाव को रोक सकते हैं और वन्यजीवों को सुरक्षित आश्रय दे सकते हैं।
पर्यावरण संरक्षण की ओर पहला कदम:
बाढ़ के बाद जब उन्होंने देखा कि कई सांप और छोटे जीव गर्मी और छांव की कमी के कारण मर रहे हैं, तो उन्होंने अपने इलाके में हरियाली बढ़ाने का संकल्प लिया।
सरकार ने उन्हें कुछ पौधे दिए, लेकिन जादव को लगा कि यह पर्याप्त नहीं है। इसलिए उन्होंने खुद ही बांस के पौधे लगाना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे अन्य पौधों को भी उगाना शुरू किया। उनके इस छोटे-से प्रयास ने बाद में एक हरे-भरे जंगल का रूप ले लिया, जिसे आज “मोलाई फॉरेस्ट” के नाम से जाना जाता है।
शुरुआत में लोगों ने उनके इस प्रयास को गंभीरता से नहीं लिया और उन्हें “पागल” तक कहा, लेकिन जादव ने बिना किसी सरकारी सहायता के अपना काम जारी रखा।
जादव पायेंग की प्रेरणा और संघर्ष:
- प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव: माजुली द्वीप हर साल बाढ़ और मिट्टी के कटाव से प्रभावित होता था, जिसने जादव पायेंग को जंगल उगाने की प्रेरणा दी।
- वन्यजीवों के लिए संवेदना: जब उन्होंने देखा कि पेड़ों के अभाव में वन्यजीव मर रहे हैं, तो उन्होंने एक जंगल विकसित करने का निश्चय किया।
- सामाजिक उपेक्षा: उनके इस प्रयास को समाज ने शुरू में बहुत गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
- अकेले काम शुरू किया: बिना किसी सहायता के उन्होंने अपने बलबूते पर यह अभियान जारी रखा और 40 से अधिक वर्षों में 1,360 एकड़ का जंगल खड़ा कर दिया।
फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया बनने की यात्रा
जादव पायेंग की “फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया” बनने की यात्रा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह दिखाती है कि एक अकेला व्यक्ति भी बड़ा बदलाव ला सकता है। उनका यह सफर 1979 से शुरू हुआ, जब उन्होंने असम के माजुली द्वीप में पर्यावरणीय क्षरण और भूमि कटाव की गंभीर समस्या को देखा।
1979: जंगल लगाने का संकल्प
1979 में, जब जादव पायेंग मात्र 16 वर्ष के थे, तब उन्होंने देखा कि माजुली द्वीप का एक बड़ा हिस्सा ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ के कारण बह गया था। इस कारण हजारों पेड़ नष्ट हो गए और इलाके में भारी भूमि कटाव शुरू हो गया।
बाढ़ के बाद, उन्होंने देखा कि पेड़ों के अभाव में हजारों सांप और छोटे जीव गर्मी और छांव की कमी के कारण मर रहे थे। यह दृश्य उनके लिए बेहद भावुक कर देने वाला था। जब उन्होंने अपने बुजुर्गों और स्थानीय प्रशासन से इस समस्या का हल पूछा, तो उन्हें बताया गया कि केवल वृक्षारोपण से ही मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है और पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
यहीं से उन्होंने फैसला किया कि वे अपने दम पर इस इलाके को दोबारा हरा-भरा बनाएंगे।
शुरुआत: पहला पेड़ लगाने से जंगल बनने तक
अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने सबसे पहले बांस के पौधे लगाए, क्योंकि बांस तेजी से बढ़ता है और भूमि कटाव को रोकने में मदद करता है। इसके बाद उन्होंने अन्य स्थानीय वृक्षों जैसे गूलर, बरगद, नीम, अर्जुन, आम, इमली और अन्य फलदार पेड़ों को लगाना शुरू किया।
उनका यह प्रयास आसान नहीं था। उन्हें अकेले ही पौधों को पानी देना पड़ता था, उनकी देखभाल करनी पड़ती थी और कई बार प्राकृतिक आपदाओं से निपटना पड़ता था। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
धीरे-धीरे उनके द्वारा लगाए गए पेड़ बड़े होने लगे और एक छोटा जंगल बनने लगा।
कठिनाइयाँ और समाज की प्रतिक्रिया
शुरुआती वर्षों में उनके इस प्रयास को बहुत ज्यादा समर्थन नहीं मिला।
- लोगों ने उन्हें पागल कहा: जब जादव पायेंग जंगल लगाने में जुटे थे, तब कई लोगों ने उनकी मेहनत का मजाक उड़ाया और कहा कि अकेले जंगल उगाना संभव नहीं है।
- कोई सरकारी सहायता नहीं मिली: उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के अपने दम पर यह काम किया।
- प्राकृतिक चुनौतियाँ: बाढ़, सूखा, गर्मी और कई अन्य मौसमीय कठिनाइयों का सामना करते हुए उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा।
लेकिन उन्होंने किसी की परवाह किए बिना हर दिन पेड़ लगाना जारी रखा।
मोलाई फॉरेस्ट: 1,360 एकड़ का जंगल
लगातार 40 वर्षों की मेहनत के बाद, जादव पायेंग का यह छोटा-सा प्रयास एक विशाल जंगल में बदल गया, जो आज 1,360 एकड़ में फैला हुआ है। इस जंगल को अब “मोलाई फॉरेस्ट” के नाम से जाना जाता है।
यह जंगल अब हाथियों, बाघों, गैंडों, हिरणों और कई अन्य वन्यजीवों का घर बन चुका है।
फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया की उपाधि
उनके इस अद्वितीय योगदान को पहचान मिली जब 2012 में भारत सरकार ने उन्हें ‘फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ की उपाधि दी। इसके बाद उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले।
2015 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारत का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है।
पर्यावरण संरक्षण का महत्व और जादव पायेंग का योगदान
पर्यावरण संरक्षण का महत्व
पर्यावरण संरक्षण केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि हमारी आवश्यकता है। आज जिस तरह से वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण, और जल संकट जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं, उससे पृथ्वी पर जीवन का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
पर्यावरण को बचाने के कुछ प्रमुख कारण:
- प्राकृतिक आपदाओं को रोकना – जंगल मिट्टी के कटाव और बाढ़ को रोकते हैं।
- स्वच्छ हवा और जल उपलब्ध कराना – पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।
- जैव विविधता को संरक्षित करना – वन्यजीवों के लिए जंगलों का होना आवश्यक है।
- ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करना – पेड़ अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके वातावरण को ठंडा रखते हैं।
- भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधन बचाना – यदि हम आज पर्यावरण की रक्षा नहीं करेंगे, तो भविष्य में जीवन कठिन हो जाएगा।
जादव पायेंग का योगदान
जादव पायेंग ने अपने प्रयासों से यह साबित किया कि एक अकेला व्यक्ति भी बड़े पैमाने पर पर्यावरण संरक्षण कर सकता है।
1. 40 वर्षों में 1,360 एकड़ जंगल उगाया
1979 में जब उन्होंने पर्यावरण को हो रहे नुकसान को देखा, तब उन्होंने अकेले वृक्षारोपण शुरू किया। आज उनका लगाया हुआ “मोलाई फॉरेस्ट” 1,360 एकड़ में फैला है, जो असम के सबसे बड़े वन क्षेत्रों में से एक बन चुका है।
2. भूमि कटाव को रोका
ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे होने के कारण माजुली द्वीप हर साल बाढ़ और मिट्टी के कटाव से ग्रस्त रहता था। जादव पायेंग के जंगल ने इस समस्या को काफी हद तक कम कर दिया है।
3. वन्यजीवों को सुरक्षित आश्रय दिया
उनके जंगल में अब हाथी, बाघ, गैंडे, हिरण, बंदर, पक्षी और कई अन्य जीव निवास करते हैं, जो पहले इस क्षेत्र में विलुप्त हो रहे थे।
4. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई
उनके लगाए गए हजारों पेड़ हर साल हजारों टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर रहे हैं, जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने में मदद मिल रही है।
5. पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाई
आज जादव पायेंग देश-विदेश में जाकर पर्यावरण संरक्षण पर व्याख्यान देते हैं और लोगों को प्रकृति बचाने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने सैकड़ों लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित किया है।
समाज और सरकार की प्रतिक्रिया – सम्मान और पुरस्कार
जादव पायेंग के असाधारण योगदान को शुरुआत में ज्यादा पहचान नहीं मिली, लेकिन जैसे-जैसे उनका जंगल बढ़ता गया और पर्यावरण पर इसके सकारात्मक प्रभाव दिखने लगे, वैसे-वैसे समाज और सरकार दोनों ने उनके कार्यों को सराहना शुरू कर दी।
समाज की प्रतिक्रिया
शुरुआती दिनों में जादव पायेंग के इस प्रयास को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया।
- लोगों ने उन्हें पागल कहा: जब उन्होंने अकेले पेड़ लगाने का काम शुरू किया, तो गांव के लोगों को यह एक असंभव प्रयास लगा और वे उनका मजाक उड़ाते थे।
- समर्थन की कमी: कई सालों तक उन्हें किसी तरह की सहायता नहीं मिली, न ही सरकार से और न ही स्थानीय लोगों से।
- चुनौतियाँ और संदेह: जंगल बनने के बाद कुछ शिकारी और अवैध लकड़ी काटने वाले लोग इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने लगे, लेकिन जादव पायेंग ने अपने दम पर जंगल की रक्षा की।
हालांकि, जब इस जंगल ने आकार लेना शुरू किया और इसमें हाथी, बाघ, गैंडे और हिरण जैसे वन्यजीव बसने लगे, तब स्थानीय लोगों को एहसास हुआ कि उनका यह काम वास्तव में अविश्वसनीय है। धीरे-धीरे लोग जागरूक हुए और उनकी सराहना करने लगे।
सरकार की प्रतिक्रिया और सम्मान
लंबे समय तक सरकार को उनके इस काम की जानकारी नहीं थी। 2008 में जब वन विभाग के अधिकारियों ने इस जंगल को देखा और जाना कि इसे केवल एक व्यक्ति ने विकसित किया है, तब उन्हें पहली बार सरकार से पहचान मिली।
प्रमुख सरकारी सम्मान:
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2012 – ‘फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ की उपाधि
- भारत सरकार ने उन्हें ‘फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ की उपाधि दी।
- यह उपाधि उनके सतत पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को सम्मानित करने के लिए दी गई।
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2015 – पद्मश्री पुरस्कार
- भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री, जो देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है, से नवाजा।
- यह सम्मान पर्यावरण संरक्षण और उनकी असाधारण सेवा के लिए दिया गया।
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राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सम्मान
- उन्हें कई यूनाइटेड नेशंस (UN) और राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थानों द्वारा ‘ग्रीन हीरो’ के रूप में सम्मानित किया गया।
- 2015 में UNEP (United Nations Environment Programme) ने उन्हें ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ’ पुरस्कार के लिए नामांकित किया।
- असम सरकार ने भी पर्यावरण संरक्षण में उनके योगदान को सराहा और कई मंचों पर उन्हें सम्मानित किया।
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अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में आमंत्रण
- जादव पायेंग को कई विश्वविद्यालयों और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में पर्यावरण संरक्षण पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया जाता है।
- उन्होंने यूएस, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और अपनी प्रेरणादायक कहानी साझा की।
आज जादव पायेंग का प्रभाव और समाज में उनकी पहचान
आज जादव पायेंग केवल एक व्यक्ति नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक बन चुके हैं।
- उन्हें असम और भारत में कई पर्यावरणीय परियोजनाओं का सलाहकार बनाया गया है।
- उनके द्वारा लगाए गए जंगल को अब संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
- कई युवा उनके नक्शे-कदम पर चलकर वृक्षारोपण और पर्यावरण बचाने के कार्यों से जुड़ रहे हैं।
जादव पायेंग से सीख – हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
- छोटे प्रयास भी बड़े बदलाव ला सकते हैं।
- पर्यावरण की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
- धैर्य और समर्पण से असंभव भी संभव हो सकता है।
- अगर हर व्यक्ति अपने आसपास हरियाली बढ़ाने का संकल्प ले, तो पर्यावरण संकट कम हो सकता है।
- समाज में बदलाव लाने के लिए सरकार पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं, हम खुद भी शुरुआत कर सकते हैं।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
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जादव पायेंग कौन हैं?
जादव पायेंग असम के एक पर्यावरणविद् हैं, जिन्हें ‘फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है। -
जादव पायेंग ने जंगल कब और कैसे लगाना शुरू किया?
उन्होंने 1979 में असम के माजुली द्वीप में अकेले जंगल उगाने का संकल्प लिया और वर्षों की मेहनत से इसे संभव किया। -
मोलाई फॉरेस्ट कहां स्थित है?
मोलाई फॉरेस्ट असम के माजुली द्वीप में स्थित है, जिसे जादव पायेंग ने अपने प्रयासों से विकसित किया है। -
जादव पायेंग को कौन-कौन से पुरस्कार मिले हैं?
उन्हें 2015 में पद्मश्री सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। -
उनके द्वारा लगाए गए जंगल का क्या प्रभाव पड़ा?
उनके जंगल से पर्यावरण संतुलन में सुधार हुआ, साथ ही वन्यजीवों को नया आवास मिला है। -
जादव पायेंग से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
हमें सीख मिलती है कि एक व्यक्ति भी पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। -
क्या सरकार ने जादव पायेंग के प्रयासों को समर्थन दिया है?
हां, सरकार ने उन्हें सम्मानित किया और उनके कार्यों को समर्थन भी दिया है। -
क्या हम भी जादव पायेंग की तरह पर्यावरण की मदद कर सकते हैं?
हां, हर व्यक्ति अपने आसपास पेड़ लगाकर और पर्यावरण संरक्षण में भाग लेकर बदलाव ला सकता है।