HomeNewsNationalभगवद् गीता के प्रेरणादायक उद्धरण: भारतीय संस्कृति के अनमोल ज्ञान

भगवद् गीता के प्रेरणादायक उद्धरण: भारतीय संस्कृति के अनमोल ज्ञान

परिचय:
भगवद गीता भारतीय धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक साहित्य का एक अति महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसका मुख्य संवाद महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ। युद्ध के मैदान में जब अर्जुन अपने कर्तव्यों को लेकर दुविधा में पड़ गए, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन, धर्म, कर्तव्य और आत्मा के बारे में ज्ञान दिया। गीता के यह उपदेश न केवल उस समय के लिए बल्कि आज भी जीवन के हर पहलू में प्रासंगिक हैं। इस लेख में हम भगवद गीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों और उनके जीवन पर प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही, हम समझेंगे कि कैसे इन श्लोकों से हमारे जीवन को दिशा और प्रेरणा मिल सकती है।

1. कर्म का महत्व (The Importance of Action):

भगवद गीता में कर्म को सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि व्यक्ति का अधिकार केवल कर्म करने में है, और वह फल की चिंता न करे। यह शिक्षा जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है।

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।”

(अध्याय 2, श्लोक 47)

अर्थ: “तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल पर नहीं। इसलिए, कर्म करते समय फल की चिंता मत करो और कर्म न करने की ओर आकर्षित मत हो।”

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जीवन में हमारे कर्तव्यों का पालन ही सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर हम बिना फल की अपेक्षा के कर्म करेंगे, तो हम मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करेंगे। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, यह सीख हमें हर प्रकार के तनाव से मुक्ति दिलाने में सहायक है।

2. आत्मा का अमरत्व (Immortality of the Soul):

भगवद गीता में आत्मा की शाश्वतता का वर्णन किया गया है। गीता के अनुसार आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है। यह शाश्वत और अजर-अमर है।

“न जायते म्रियते वा कदाचि-
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।”

(अध्याय 2, श्लोक 20)

अर्थ: “आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही कभी मरती है। यह नित्य, शाश्वत, अजर और अमर है। शरीर के नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।”

यह विचार जीवन और मृत्यु के भय से हमें मुक्त करता है। इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि जीवन का अंत केवल शरीर का होता है, आत्मा अजर-अमर है। यह शांति और धैर्य की भावना प्रदान करता है, खासकर जीवन के कठिन समय में।

3. योग का महत्व (Importance of Yoga):

भगवद गीता में योग को जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि योग के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन के सारे कष्टों से मुक्त हो सकता है।

“योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।”

(अध्याय 2, श्लोक 48)

अर्थ: “हे अर्जुन! योग में स्थित होकर कर्म करो, और सिद्धि-असिद्धि के प्रति समान भाव रखते हुए संग त्याग दो। योग का अर्थ ही समता है।”

यह उद्धरण हमें यह सिखाता है कि योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि मानसिक संतुलन भी है। जीवन में सभी प्रकार के उतार-चढ़ावों में समता बनाए रखना ही योग है। आज के समय में, जब हर व्यक्ति तनाव से ग्रस्त है, यह शिक्षा हमें मानसिक शांति प्राप्त करने में सहायक है।

4. संतुलित जीवन (Balanced Living):

भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया है। चाहे भोजन हो, कार्य हो, या आराम—हर चीज़ में संतुलन आवश्यक है।

“युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।”

(अध्याय 6, श्लोक 17)

अर्थ: “योग दुखों का नाश करता है जो व्यक्ति संतुलित भोजन करता है, संतुलित कार्य करता है और संतुलित निद्रा और जागरूकता का पालन करता है।”

यह उद्धरण हमें सिखाता है कि जीवन में हर चीज़ का उचित संतुलन होना चाहिए। अधिकता किसी भी चीज़ की हानिकारक होती है। अगर हम अपने जीवन में संतुलन बनाए रखते हैं, तो हम शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ रह सकते हैं।

5. भक्ति का महत्व (Importance of Devotion):

भगवद गीता में भक्ति का विशेष महत्व बताया गया है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ उन्हें स्मरण करता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।

“पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।”

(अध्याय 9, श्लोक 26)

अर्थ: “यदि कोई व्यक्ति मुझे भक्ति के साथ एक पत्र, एक फूल, एक फल, या जल अर्पित करता है, तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ।”

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि भक्ति में सच्ची श्रद्धा और समर्पण ही महत्वपूर्ण है। भक्ति में किए गए छोटे से छोटे कार्य भी भगवान द्वारा स्वीकार किए जाते हैं। यह जीवन के हर क्षेत्र में विश्वास और समर्पण के महत्व को दर्शाता है।

6. मोह-माया से मुक्ति (Freedom from Attachment):

भगवान श्रीकृष्ण ने मोह-माया को जीवन में दुःख का प्रमुख कारण बताया है। उन्होंने अर्जुन को मोह-माया से मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का पालन करने का उपदेश दिया।

“मृत्युः सर्वहरश्चाहम् उद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधाधृतिः क्षमा।।”

(अध्याय 10, श्लोक 34)

अर्थ: “मैं मृत्यु हूँ, जो सभी कुछ छीन लेता है, और भविष्यों का उद्भव भी मैं ही हूँ। मैं कीर्ति, श्री, वाक्शक्ति, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा हूँ।”

यह उद्धरण हमें यह सिखाता है कि मोह-माया का त्याग कर हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। मोह-माया में बंधकर हम जीवन की वास्तविकता को नहीं समझ पाते और दुःख का कारण बनते हैं।

7. आत्म-संयम (Self-Control):

जीवन में सफलता और शांति प्राप्त करने के लिए आत्म-संयम का पालन अत्यंत आवश्यक है। आत्म-संयम व्यक्ति को आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।

“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।”

(अध्याय 6, श्लोक 5)

अर्थ: “मनुष्य को स्वयं अपने द्वारा ही उठाना चाहिए और अपने आप को गिराना नहीं चाहिए, क्योंकि स्वयं ही मनुष्य का मित्र है और स्वयं ही मनुष्य का शत्रु।”

यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि हमारा मन ही हमारा सबसे बड़ा मित्र और शत्रु है। अगर हम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हैं, तो हम जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। आत्म-संयम जीवन में अनुशासन और दृढ़ता का मार्ग प्रशस्त करता है।

Bhagvad Gita Quotes

  1. आत्मा न तो जन्म लेती है,
    और न ही मरती है आत्मा अमर है।
  2. जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझमें
    देखता है,
  3. उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है।
  4. एक अनुशासित व्यक्ति अपना तथा समाज व देश का
    विकास कर सकता है।
  5. शिक्षा और ज्ञान उसी को मिलता है जिसमें जिज्ञासा होती है।
  6. मनुष्य को जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए
    और न ही भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों का प्रयोग करना चाहिए।
  7. आत्म-ज्ञान की तलवार से अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को काटकर अलग कर दो उठो अनुशाषित रहो।
  8. जो पैदा हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है,
    जैसे जो मृत है उनके लिए जन्म इसलिए जिसे बदल नहीं सकते उसके लिए शोक मत करो।
  9. अच्छे कर्म करने के बावजूद भी लोग केवल आपकी बुराइयाँ ही याद रखेंगे,
    इसलिए लोग क्या कहते हैं इस पर ध्यान मत दो तुम अपना कर्म करते रहो।
  10. सत्य कभी दावा नहीं करता कि मैं सत्य हूं,.
    लेकिन झूठ हमेशा दावा करता हैं कि सिर्फ मैं ही सत्य हूं।
  11. गलतियां ढूंढना गलत नही है बस शुरुआत खुद से होनी चाहिए।
  12. अच्छी नीयत से किया गया काम कभी व्यर्थ नहीं जाता, और उसका फल आपको ज़रूर मिलता है।
  13. जिससे किसी को कष्ट नहीं पहुँचता तथा जो अन्य किसी के द्वारा विचलित नहीं होता,
    जो सुख-दुख में भय तथा चिन्ता में समभाव रहता है, वह मुझे अत्यन्त प्रिय है।
  14. क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है यानी मूढ़ हो जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है।
    स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है
    और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद का अपना ही नाश कर बैठता है।
  15. जो मनुष्य सुख और दुख में विचलित नहीं होता है,
    दोनों में समभाव रखता है वह मनुष्य निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य हैं।
  16. आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं,
    न आग उसे जला सकती है,
    न पानी उसे भिगो सकता है,
    न हवा उसे सुखा सकती है।
  17. ध्यान का अर्थ है भीतर से मुस्कुराना
    और सेवा का अर्थ है इस मुस्कुराहट को औरों तक पँहुचाना।
  18. हृदय से जो दिया जा सकता है वो हाथ से नहीं
    और मौन से जो कहा जा सकता है वो शब्द से नहीं।
  19. समय और भाग्य दोनों परिवर्तनशील है
    इनपर कभी अहंकार नही करना चाहिए।
  20. सुकून संसार की सबसे महँगी वस्तू है,
    जो केवल आपको प्रभु की भक्ति से ही मिलेगी ।
  21. मनुष्य की मानवता उसी समय नस्ट हो जाती है,
    जब उसे दूसरों के दुख में हसीं आने लगती।
  22. अगर भगवान तुम्हें ज्यादा इंतज़ार करवा रहा है तो तैयार रहना,
    वो उससे कही ज्यादा देने वाले हैं जितना तुमने मांगा था।
  23. मन को प्रभु के साथ जोड़ दो जहाँ प्रभु जाएं,
    वहाँ मन जाए और जहाँ मन जाए वहाँ प्रभु साथ रहें ।
  24. मुश्किलें केवल बेहतरीन लोगों के हिस्से में आती है,
    क्योंकि वही लोग उसे बेहतरीन तरीके से अंजाम देने की ताकत रखते हैं।
  25. अगर परमात्मा तुम्हें कष्ट के पास ले आया है,
    तो अवश्य ही वो तुम्हें कष्ट के पार भी ले जाएगा।
  26. जो भी हुआ अच्छा हुआ जो हो रहा है अच्छा हो रहा है,
    जो भी होगा अच्छा होगा, भविष्य के बारे में चिंता मत करो। वर्तमान में जियो ।
  27. निंदा से घबराकर अपने लक्ष्य को न छोड़े क्योंकि,
    लक्ष्य मिलते ही निंदा करने वालों की राय बदल जाती है।
  28. जो सरलता से मिलता रहे उसका महत्व नही रह जाता,
    अक्सर खो देने के बाद समय, व्यक्ति और संबंध के मूल्य का आभास होता है।
  29. चिंता मत करो क्योंकि जिसने तुम्हें इस संसार में भेजा है उसे तुम्हारी ज्यादा चिंता है।
  30. किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है,
    कि अपना काम करें भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।
  31. उस दिन हमारी सारी परेशानियाँ ख़त्म हो जायेगी,
    जिस दिन हमें यकीन हो जाएगा की हमारा सारा काम ईश्वर की मर्जी से होता है।
  32. ज्यादा खुश होने पर और ज्यादा दुखी होने पर निर्णय नहीं लेना चाहिए,
    क्योंकि यह दोनों परिस्थितियां आपको सही निर्णय नहीं लेने देती हैं।
  33. कुछ लोग अपने अधिकार के लिए तो संघर्ष करते है,
    परंतु अपने कर्तव्य को भुल जाते है।
  34. दुख का मूल कारण ही यही है, कि सुख की तलाश में बाहरी दुनिया में भटकते रहना।
  35. ईश्वर की शरण में निःस्वार्थ भाव से जाएं,
    क्योंकि आपको क्या चाहिए, उन्हें पता है।
  36. जो सरलता से मिलता रहे उसका महत्व नही रह जाता,
    अक्सर खो देने के बाद समय, व्यक्ति और संबंध के मूल्य का आभास होता है।
  37. बिना मुहूर्त के जन्म लेता है और बिना मुहूर्त के ही दुनिया से चला जाता है,
    फिर भी इंसान अच्छे मुहूर्त के पीछे भागता रहता है,
    अगर विचार हमारे अच्छे हो और
    व्यवहार हमारे सच्चे हो तो कोई भी कार्य बुरा नहीं हो सकता।
  38. अगर आप क्रोध के समय थोड़ा सा धैर्य रख ले तो,
    आप कम से कम सौ दुःख भरे दिनों से बच सकते है।
  39. जीवन में सब कुछ खत्म होने जैसा कुछ भी नहीं होता,
    हमेशा एक नई शुरुआत हमारा इंतजार कर रही होती है।
  40. यदि तुम्हारे अंदर खुद को बदलने की ताकत नही है,
    तो तुम्हारा कोई अधिकार नही की तुम भगवान या भाग्य को दोष दो।
  41. समय जब पलटता है तो सबकुछ पलट देता है इसलिए,
    अच्छे समय में घमंड ना रखे और बुरे वक़्त में सब्र रखना ना छोड़े।
  42. सम्मान हमेशा समय और स्थिति का होता है,
    पर इंसान उसे अपना समझ लेता है।
  43. किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है,
    कि अपना काम करें भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।
  44. जिस इंसान के सच्चे होने की गवाही आपका दिल दे,
    वो इंसान कभी भी आपके लिए गलत नहीं हो सकता।
  45. अगर साफ नियत से मांगा जाए तो ईश्वर नसीब से बढक़र देता है।
  46. दान करना और भूल जाना दान की सर्वोच्च प्रक्रिया है,
    कि गई दान की गणना तुम्हारे दान को तुच्छ बना देता है।
  47. अगर परमात्मा तुम्हें कष्ट के पास ले आया है,
    तो अवश्य ही वो तुम्हें कष्ट के पार भी ले जाएगा ।
  48. परिवार के साथ धैर्य प्यार कहलाता है,
    औरों के साथ धैर्य सम्मान कहलाता है,
    स्वयं के साथ धैर्य आत्मविश्वास कहलाता है,
    और भगवान के साथ धैर्य आस्था कहलाती है।
  49. जो लोग तुम्हारी बुराई करते हैं वो करेंगे
    चाहे तुम अच्छा काम करो या बुरा।
    इस लिए शांत रहकर अपना कर्म करते रहे।
  50. निंदा से मत घबराओ निंदा उसी की होती है,
    जो जिंदा है मरने के बाद तो सिर्फ़ तारीफ होती है।
  51. बुरा समय आपको जिंदगी के उन सभी सच से सामना करवाता है,
    जिनका आपको अच्छे समय में कभी ख्याल नहीं होता।
  52. कर्म का धर्म से अधिक महत्व है
    क्योंकि धर्म करके भगवान से माँगना पड़ता है
    पर कर्म करने पर भगवान स्वयं फल देता है।
  53. हम जिस मनुष्य पर अति विश्वास करते हैं,
    वही हमारे विरुद्ध षड्यंत्र करते हैं ।
  54. प्रेम और विश्वास पाने के लिए अवसर मांगे नहीं जाते,
    अवसर ढूंढ कर उस प्रेम और विश्वास को जीता जाता है।
  55. स्वार्थ से रिश्ते बनाने की कितनी भी कोशिश करें,
    वो कभी नही बनते हैं और प्रेम से बने रिश्तों को कितना भी तोड़ने की कोशिश करें वो कभी नही टूटते।
  56. बुरे वक़्त में तो हर कोई भगवान को याद करता है,
    पर दुनिया में बहुत ही कम लोग हैं जो अपने
    अच्छे वक़्त में भी भगवान को याद करते है।
  57. संघर्ष करते हुए कभी मत घबराना,
    क्योंकि संघर्ष के दौरान ही इंसान अकेला होता है
    सफलता के बाद तो सारी दुनिया साथ देती है।
  58. प्रेम का कोई रूप नही होता,
    जब कोई एहसास खुद से ज्यादा अच्छा लगे तो वो प्रेम है।
  59. सच्चा स्नेह करने वाला केवल आपको बुरा बोल सकता है,
    कभी आपका बुरा नहीं कर सकता क्योंकि
    उसकी नाराजगी में आपकी फिकर और
    दिल में आपके प्रति सच्चा स्नेह होता है।
  60. परेशानी आए तो ईमानदार रहें धन आ जाए तो सरल रहें,
    अधिकार मिलने पैर नम्र रहें और कोध आने पर शांत रहें यही जीवन का प्रबंधन कहलाता है।
  61. यहां सभी के जीवन में मुसीबतें जरूर है,
    लेकिन जो मुसीबतों से लड़कर आगे बढ़े,
    वहीं आज की महाभारत का अर्जुन है।

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न):

1. भगवद गीता का मुख्य संदेश क्या है?
भगवद गीता का मुख्य संदेश यह है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी अपेक्षा के करना चाहिए और आत्मज्ञान के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति करनी चाहिए।

2. भगवद गीता में कितने अध्याय और श्लोक हैं?
भगवद गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। प्रत्येक अध्याय एक विशेष जीवन दर्शन और सिद्धांत पर आधारित है।

3. भगवद गीता के विचार आज के समय में कैसे प्रासंगिक हैं?
भगवद गीता के विचार समय के परे हैं। यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन करते हैं, चाहे वह कार्यक्षेत्र हो, पारिवारिक जीवन हो, या फिर व्यक्तिगत विकास। इसके सिद्धांत आधुनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने में भी सहायक हैं।

4. भगवद गीता का अध्ययन क्यों करना चाहिए?
भगवद गीता का अध्ययन करने से व्यक्ति को जीवन के सही उद्देश्य, कर्तव्य और आत्मा के बारे में गहन समझ प्राप्त होती है। यह न केवल धार्मिक, बल्कि दार्शनिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण से भी लाभकारी है।

5. क्या भगवद गीता के विचार जीवन के हर क्षेत्र में लागू होते हैं?
जी हाँ, भगवद गीता के विचार जीवन के हर क्षेत्र में लागू होते हैं। चाहे वह कार्य हो, व्यक्तिगत संबंध हो, या आत्मा और धर्म से जुड़ी बातें, गीता हमें हर परिस्थिति में मार्गदर्शन देती है।

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