गुरु पूर्णिमा हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो गुरु की महिमा का गुणगान करता है। गुरु शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसमें “गु” का अर्थ अज्ञानता और “रु” का अर्थ अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला है। इसलिए, गुरु वह होता है जो हमें अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाता है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समकक्ष माना गया है, जो ब्रह्मांड के सृजन, पालन और विनाश की त्रिमूर्ति का प्रतीक हैं।
गुरु का महत्व और उनकी भूमिका
गुरु का स्थान समाज में सर्वोच्च है। एक गुरु उस दीये की तरह होता है, जो अपने शिष्य के जीवन में रोशनी भरता है, और उसे सही मार्ग दिखाता है। चाहे वह अध्यात्म हो, शिक्षा हो, या किसी भी प्रकार का व्यक्तिगत विकास, गुरु का मार्गदर्शन ही शिष्य को उच्च स्थान पर पहुँचाने में मदद करता है। गुरु के बिना जीवन अधूरा माना गया है, क्योंकि गुरु हमें जीवन की सच्चाई का बोध कराते हैं और हमें जीवन के वास्तविक उद्देश्य से परिचित कराते हैं।
जैसा कि कबीर ने कहा है,
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियो बताय।”
इस दोहे में कबीर गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं कि यदि एक ओर गुरु खड़े हों और दूसरी ओर भगवान गोविंद (कृष्ण) खड़े हों, तो पहले किसके पैर छूने चाहिए? कबीर कहते हैं कि गुरु का स्थान पहले आता है, क्योंकि उन्होंने ही भगवान तक पहुँचने का मार्ग दिखाया है।
गुरु पूर्णिमा का इतिहास
गुरु पूर्णिमा का पर्व मुख्यतः आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन को विशेष रूप से महान गुरु व्यास जी के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना की थी और वेदों का वर्गीकरण किया था। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऋषि वेद व्यास का योगदान भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, और उन्हें वेदों को चार भागों में विभाजित करने का श्रेय दिया जाता है — ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।
बौद्ध धर्म और गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा का महत्व सिर्फ हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं है। यह बौद्ध धर्म में भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। इस उपदेश को धर्मचक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है, और यह बौद्ध धर्म की शिक्षाओं की नींव रखता है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इस दिन को विशेष श्रद्धा के साथ मनाते हैं, और भगवान बुद्ध के पहले उपदेश का स्मरण करते हैं।
योग और गुरु पूर्णिमा
योगिक परंपरा में, गुरु पूर्णिमा को भगवान शिव के सम्मान में भी मनाया जाता है, जिन्हें आदियोगी या पहले योगी के रूप में जाना जाता है। योगिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने इस दिन सप्तऋषियों को योग की शिक्षा दी थी। सप्तऋषियों ने इस ज्ञान को पूरे विश्व में फैलाया, और इसी कारण भगवान शिव को योग का पहला गुरु माना जाता है।
गुरु पूर्णिमा और जैन धर्म
जैन धर्म में भी गुरु पूर्णिमा का एक विशेष स्थान है। 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने कैवल्य प्राप्ति के बाद अपने पहले शिष्य के रूप में इंद्रभूति गौतम (गौतम स्वामी) को स्वीकार किया था। जैन धर्म में गुरु पूर्णिमा को आध्यात्मिक गुरु की महिमा का दिन माना जाता है, और इस दिन जैन समुदाय अपने गुरुओं को विशेष रूप से सम्मानित करता है।
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन भक्त अपने आध्यात्मिक गुरुओं की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिरों में जाते हैं। इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं और अपने गुरुओं को भेंट स्वरूप कुछ न कुछ अर्पित करते हैं। विशेष रूप से आश्रमों और मठों में, छात्रों द्वारा अपने गुरुओं की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन गुरुओं का चरण स्पर्श किया जाता है और उन्हें शिष्यगण अपने श्रद्धा और समर्पण के भाव से नमन करते हैं।
गुरु पूर्णिमा और शिक्षा
गुरु पूर्णिमा न केवल आध्यात्मिक गुरुओं के लिए समर्पित है, बल्कि यह उन सभी शिक्षकों के सम्मान का दिन भी है, जो हमें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान करते हैं। इस दिन विशेष रूप से विद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों का सम्मान किया जाता है।
नेपाल में इसे शिक्षक दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जहां शिक्षक समाज के आधार स्तंभ माने जाते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन छात्र अपने शिक्षकों को सम्मानित करते हैं और उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर FAQs
1. गुरु पूर्णिमा किस दिन मनाई जाती है?
गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो हर साल हिंदू कैलेंडर के अनुसार बदलती रहती है। आमतौर पर यह जुलाई महीने के अंत में आती है।
2. गुरु पूर्णिमा का महत्व क्या है?
गुरु पूर्णिमा गुरु की महिमा का गुणगान करने का दिन है। इस दिन भक्त अपने गुरुओं के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान प्रकट करते हैं। यह दिन विशेष रूप से गुरु वेद व्यास, भगवान बुद्ध, और भगवान शिव को समर्पित है।
3. गुरु पूर्णिमा का उत्सव कैसे मनाया जाता है?
इस दिन भक्त अपने गुरुओं की पूजा करते हैं, उपवास रखते हैं, और आश्रमों एवं मंदिरों में जाकर गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कई लोग इस दिन विशेष पूजा का आयोजन करते हैं और अपने गुरुओं को सम्मानित करते हैं।
4. गुरु पूर्णिमा का बौद्ध धर्म में क्या महत्व है?
बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा को गौतम बुद्ध द्वारा दिए गए पहले उपदेश का दिन माना जाता है। इस दिन बौद्ध अनुयायी भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का पालन करते हैं और उन्हें विशेष श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
5. गुरु पूर्णिमा का जैन धर्म में क्या महत्व है?
जैन धर्म में यह दिन महावीर स्वामी और उनके पहले शिष्य गौतम स्वामी के सम्मान का दिन है। जैन अनुयायी इस दिन अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं और उन्हें पूजा के माध्यम से नमन करते हैं।
निष्कर्ष
गुरु पूर्णिमा का पर्व न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी संस्कृति और समाज के उन मूल्यों को भी प्रकट करता है, जो गुरु-शिष्य संबंध को सर्वोच्च मानते हैं। यह दिन हमें हमारे गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करने और उनकी शिक्षाओं के प्रति अपनी निष्ठा को दोहराने का अवसर प्रदान करता है। चाहे वह वेदों का ज्ञान हो, बुद्ध के उपदेश हों या योग की शिक्षाएं, गुरु पूर्णिमा हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में सही मार्ग दिखाने वाला गुरु ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।