भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble to the Indian Constitution) हमारे संविधान का उद्घाटन भाषण है। यह हमारे संविधान के उद्देश्यों और महत्वाकांक्षाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। प्रस्तावना में समाहित प्रत्येक शब्द और वाक्य संविधान की आत्मा को अभिव्यक्त करते हैं। इस लेख में, हम भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे, जिसमें उसके मुख्य बिंदु, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, और इसके महत्व को शामिल किया जाएगा।
प्रस्तावना का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय संविधान की प्रस्तावना जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किए गए ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ पर आधारित है। इसे 13 दिसंबर 1946 को संविधान सभा में पेश किया गया था। यह प्रस्ताव भारतीय संविधान के मौलिक सिद्धांतों और उद्देश्यों का सार है। प्रस्तावना को संविधान का ‘परिचय पत्र’ कहा जाता है और इसे सर्वप्रथम अमेरिकी संविधान में शामिल किया गया था। इसके बाद, कई देशों ने इसे अपने संविधान में अपनाया।
प्रस्तावना का मूल पाठ
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:
- न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक;
- विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता;
- प्रतिष्ठा और अवसर की समता; प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”
प्रस्तावना के चार घटक
- संविधान के अधिकार का स्रोत: यह इस बात की ओर इशारा करता है कि संविधान के अधिकार का स्रोत भारत के लोगों में निहित है।
- राष्ट्र की प्रकृति: यह घोषणा करता है कि भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है।
- नागरिकों के लिए अधिकार: यह सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता को सुरक्षित करता है तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भाईचारे को बढ़ावा देता है।
- संविधान को अंगीकार करने की तिथि: इसमें उस तारीख (26 नवंबर 1949) का उल्लेख है जिस दिन संविधान को अपनाया गया था।
प्रस्तावना के मूल शब्दों की व्याख्या
1. संप्रभुता
प्रस्तावना यह दावा करती है कि भारत एक संप्रभु देश है। संप्रभुता का अर्थ है कि भारत किसी भी विदेशी या आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त है। भारतीय विधायिका को संविधान द्वारा तय की गई कुछ सीमाओं के तहत देश में कानून बनाने का अधिकार है।
2. समाजवादी
‘समाजवादी’ शब्द 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था। समाजवाद का अर्थ है कि समाजवादी की प्राप्ति लोकतांत्रिक तरीकों से होती है। भारत ने ‘लोकतांत्रिक समाजवाद’ को अपनाया है, जो एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है जहां निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र कंधे से कंधा मिलाकर चलते हैं। इसका लक्ष्य गरीबी, अज्ञानता, बीमारी और अवसर की असमानता को समाप्त करना है।
3. धर्मनिरपेक्ष
‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भी 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ है कि भारत में सभी धर्मों को राज्य से समानता, सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार है। संविधान के भाग III के अनुच्छेद 25 से 28 एक मौलिक अधिकार के रूप में धर्म की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हैं।
4. लोकतांत्रिक
लोकतांत्रिक शब्द का अर्थ है कि संविधान की स्थापना एक सरकार के रूप में होती है जिसे चुनाव के माध्यम से लोगों द्वारा निर्वाचित होकर अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रस्तावना इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथ में है। लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के लिए किया जाता है।
5. गणराज्य
गणराज्य का अर्थ है कि राज्य का प्रमुख प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लोगों द्वारा चुना जाता है। भारत के राष्ट्रपति को लोगों द्वारा परोक्ष रूप से चुना जाता है; इसका अर्थ संसद और राज्य विधानसभाओं में उनके प्रतिनिधियों के माध्यम से होता है। गणराज्य में राजनीतिक संप्रभुता एक राजा की बजाय लोगों के हाथों में निहित होती है।
6. न्याय
प्रस्तावना में न्याय शब्द को तीन अलग-अलग रूपों में समाविष्ट किया गया है- सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, जिन्हें मौलिक और नीति निर्देशक सिद्धांतों के विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से हासिल किया गया है। सामाजिक न्याय का अर्थ संविधान द्वारा बराबर सामाजिक स्थिति के आधार पर एक अधिक न्यायसंगत समाज बनाने से है। आर्थिक न्याय का अर्थ समाज के अलग-अलग सदस्यों के बीच संपत्ति के समान वितरण से है। राजनीतिक न्याय का अर्थ सभी नागरिकों को राजनीतिक भागीदारी में बराबरी के अधिकार से है।
7. स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का तात्पर्य एक व्यक्ति जो मजबूरी के अभाव या गतिविधियों के वर्चस्व के कारण तानाशाही गुलामी, चाकरी, कारावास, तानाशाही आदि से मुक्त या स्वतंत्र कराना है।
8. समानता
समानता का अभिप्राय समाज के किसी भी वर्ग के खिलाफ विशेषाधिकार या भेदभाव को समाप्त करने से है। संविधान की प्रस्तावना देश के सभी लोगों के लिए स्थिति और अवसरों की समानता प्रदान करती है। संविधान देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता प्रदान करने का प्रयास करता है।
9. भाईचारा
भाईचारे का अर्थ बंधुत्व की भावना से है। संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गरिमा को बनाए रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देती है।
प्रस्तावना में संशोधन
1976 में, 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था। अदालत ने इस संशोधन को वैध ठहराया था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा व्याख्या
संविधान में प्रस्तावना को तब जोड़ा गया था जब बाकी संविधान पहले ही लागू हो गया था। बेरूबरी यूनियन के मामले में (1960) सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। हालांकि, यह स्वीकार किया गया कि यदि संविधान के किसी भी अनुच्छेद में एक शब्द अस्पष्ट है या उसके एक से अधिक अर्थ होते हैं तो प्रस्तावना को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
केशवानंद भारती मामले (1973) में सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसले को पलट दिया और यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और इसे संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। एक बार फिर, भारतीय जीवन बीमा निगम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान की प्रस्तावना संविधान का सार है। इसमें बुनियादी आदर्श, उद्देश्य और दार्शनिक अवधारणाएं शामिल हैं। प्रस्तावना संविधान के मौलिक सिद्धांतों और उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है और संवैधानिक प्रावधानों के लिए तर्कसंगतता या निष्पक्षता प्रदान करती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमारे देश के नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की भावना के साथ जीने के लिए प्रेरित करती है। यह हमारे देश की संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और गणराज्य की प्रकृति को भी स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
इस प्रकार, भारतीय संविधान की प्रस्तावना न केवल एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह हमारे देश की आत्मा और मर्म को भी प्रकट करती है। इसका प्रत्येक शब्द और वाक्य हमारे राष्ट्र की विकास यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसे समझना और मानना हर भारतीय का कर्तव्य है।