सुन्य, का आविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ब्रह्मगुप्त को जाता है | क्योंकि उन्होंने 628 ईसवी में सुन्य, को सिद्धांतों सहित पेश किया था | ब्रह्मगुप्त से पहले भारत के महान गणितज्ञ , और ज्योतिष आर्यभट्ट ने सुन्य, का प्रयोग किया था | इसलिए कई लोग आर्यभट्ट को भी सुन्य का जनक मानते थे |
सुन्य एक सम संख्या है | अन्य शब्दों में इसकी क्षमता – पूर्णांक का गुणधर्म जो उसका सम , अथवा, विषम, होने का निर्धारण करता है | सम है इससे सम संख्या सिद्ध करने का सबसे आसान तरीका यह है कि सुन्य, “सम” होने के परिभाषा में सटीक बैठता है | यह 2 , का पूर्ण गुणों से विशेष रूप से 0+,2, का मान सुन्य प्राप्त होता है |
गणित में शून्य का जनक आर्यभट्ट है | क्योंकि आर्यभट्ट ने अंकों की नई पद्धति को जन्म दिया था | उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभत्य में भी इस पद्धति में कार्य किया है आर्यभट्टया को में एक से अरब तक की संख्या है बात कर लिखा है |
सुन्य, कि खोजने मानवता की गरिमा को नए स्तर पर उठाया है | और विज्ञान के क्षेत्र में एक नया युग खोल दिया है | शून्य की खोज ने गणित क्षेत्रों में एक नया सम्राट उत्पन्न किया | और भारतीय गणित को विश्व में मान्यता दिलाई | इसके साथ ही सुन्य की खोज ने विज्ञान और गणित के रूप में भारत एक नाम को विश्व में प्रसारित किया | आर्यभट्ट के शून्य की खोज के बाद विश्व में इस अद्भुत आविष्कार का सम्मान किया गया | आर्यभट्ट के सुन्य, के सिद्धांत ने गणित को एक नया आयाम दिया | और गणित के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया | आज भी सुन्य, को गणित के नीव माना जाता है | और यह अध्ययन के विभिन्न पहलू में अविक्षण रूप से सामान्य है |
शून्य की खोज में वैज्ञानिकों को एक नया विश्वास दिया है की सर्वांगीण विकास के लिए विचार और अद्भुत विचारधारा की आवश्यकता होती है विज्ञान और गणित में यह महत्वपूर्ण सिद्धांत आज भी लागू होता है और नए अन्वाषण के लिए मुख्य आधार बनता है |
सुन्य , की खोज ने मानवता के लिए भी एक गहरा संदेश दिया है | इस खोज ने दिखाए कि संघर्ष की दठता और अद्भुत उत्साह से हम किसी भी अविस्मरणीय चीज को हासिल कर सकते हैं