इलेक्ट्रॉनिक कचरे (E-waste) में आमतौर पर छोड़े गए कंप्यूटर मॉनिटर, मदरबोर्ड, मोबाइल फोन और चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क, हेडफोन, टेलीविजन सेट, एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर शामिल हैं। ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2017 के अनुसार, भारत सालाना लगभग 2 मिलियन टन (एमटी) ई-कचरा (E-waste) उत्पन्न करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-कचरा उत्पादक देशों में पांचवें स्थान पर है।
भारत के लगभग 95 प्रतिशत ई-वेस्टको अनौपचारिक क्षेत्र में और कच्चे तरीके से रीसायकल किया जाता है। 24 जनवरी, 2019 को विश्व आर्थिक मंच में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा प्रस्तुत ई-वेस्टपर एक रिपोर्ट बताती है कि 2018 में अपशिष्ट धारा 48.5 मीट्रिक टन तक पहुंच गई और अगर कुछ भी नहीं बदलता है तो यह आंकड़ा दोगुना होने की उम्मीद है।
मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि 2020 टोक्यो ओलंपिक पदक 50,000 टन ई-वेस्टसे बने होंगे। आयोजन समिति सभी मेडल पुराने स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य गैजेट्स से बनाएगी। नवंबर 2018 तक, आयोजकों ने 47,488 टन उपकरण एकत्र किए थे, जिसमें से 5,000 पदक बनाने के लिए लगभग 8 टन सोना, चांदी और कांस्य निकाला जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में करीब 5.36 करोड़ मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न हुआ था जोकि 2030 में बढ़कर 7.4 करोड़ मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगा। 2019 में अकेले एशिया में सबसे ज्यादा 2.49 करोड़ टन कचरा उत्पन्न हुआ था। इसके बाद अमेरिका में 1.31 करोड़ टन, यूरोप में 1.2 करोड़ टन, अफ्रीका में 29 लाख टन और ओशिनिया में 7 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट उत्पन्न हुआ था। अनुमान है कि केवल 16 वर्षों में यह ई-वेस्ट लगभग दोगुना हो जाएगा।
ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट बनाने वाले निर्माताओं को ही अंतत: ई-वेस्ट का कलेक्शन करना होता है। देश में करीब 1630 ऐसे निर्माताओं को ईपीआर (एक्स्टेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पॉंसिबिलिटी) ऑथराइजेशन भी दिया गया है, जिनकी क्षमता 7 लाख टन से अधिक ई-वेस्ट प्रोसेसिंग की है।
लेकिन, ई-वेस्ट कलेक्शन से संबंधित डेटा कुछ और ही कहानी बताते हैं। जिसका सीधा सा मतलब है कि ईपीआर ऑथराइजेशन प्राप्त निर्माता अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे है। सीपीसीबी ने ऐसे 292 निर्माताओं को गलत तरीके से कलेक्शन सेंटर चलाने की वजह से चेतावनी भी दी थी।