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श्याम सुंदर कौन हैं? श्याम सुंदर के 108 नाम

श्याम सुंदर कौन हैं?

“श्याम सुंदर” भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रिय नाम है। “श्याम” का अर्थ है गहरा नीला या सांवला, और “सुंदर” का अर्थ है अत्यंत आकर्षक। यह नाम श्रीकृष्ण के दिव्य और मोहक रूप का वर्णन करता है। भक्तगण श्रीकृष्ण को प्रेम और भक्ति के साथ “श्याम सुंदर” कहकर पुकारते हैं।

श्याम सुंदर के 108 नाम

भगवान श्रीकृष्ण के अनेक दिव्य नाम हैं, जिनमें से 108 प्रसिद्ध नाम इस प्रकार हैं:

  1. कृष्ण – सभी को आकर्षित करने वाले
  2. गोविंद – गौ और वेदों के रक्षक
  3. माधव – लक्ष्मी के स्वामी
  4. दामोदर – माता यशोदा द्वारा कमर में रस्सी से बाँधे गए
  5. मुरारी – दैत्य मुर को संहार करने वाले
  6. वासुदेव – वसुदेव के पुत्र
  7. हरि – सभी पापों को हरने वाले
  8. चक्रधर – सुदर्शन चक्र धारण करने वाले
  9. गिरिधारी – गोवर्धन पर्वत उठाने वाले
  10. मधुसूदन – मधु नामक राक्षस का वध करने वाले
  11. जनार्दन – भक्तों के दुःख हरने वाले
  12. केशव – सुंदर केश (बाल) वाले
  13. मुरलीधर – बांसुरी धारण करने वाले
  14. परमात्मा – संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त
  15. अनंत – जिनका कोई अंत नहीं
  16. भगवान – सभी ऐश्वर्यों के स्वामी
  17. चतुर्भुज – चार भुजाओं वाले
  18. यशोदानंदन – माता यशोदा के प्रिय पुत्र
  19. नंदनंदन – नंद बाबा के पुत्र
  20. वृंदावन बिहारी – वृंदावन में विहार करने वाले
  21. राधा-कांत – श्रीराधा के प्रिय
  22. रासेश्वर – रासलीला के स्वामी
  23. कमलनयन – कमल के समान नेत्र वाले
  24. अच्युत – जो कभी पतन को प्राप्त न हों
  25. कंसनिधन – कंस का वध करने वाले
  26. गोपीनाथ – गोपियों के स्वामी
  27. बलरामानुज – बलराम के छोटे भाई
  28. शरणागतवत्सल – शरण में आए भक्तों के रक्षक
  29. सत्यव्रत – सत्य का पालन करने वाले
  30. कपिल – महर्षि कपिल के समान ज्ञानी
  31. यदुनंदन – यदुवंश में जन्मे
  32. अमृतमय – अमृत स्वरूप
  33. पार्थसारथी – अर्जुन के सारथी
  34. त्रिभुवननाथ – तीनों लोकों के स्वामी
  35. द्वारकाधीश – द्वारका के राजा
  36. योगेश्वर – योग के स्वामी
  37. नारायण – सभी जीवों में स्थित
  38. अचिंत्य – जिनका विचार नहीं किया जा सकता
  39. गोपाल – ग्वालों के रक्षक
  40. जगन्नाथ – संपूर्ण जगत के स्वामी
  41. राधावल्लभ – राधा के प्रिय
  42. सुदर्शनधारी – सुदर्शन चक्र धारण करने वाले
  43. गोवर्धनधारी – गोवर्धन पर्वत उठाने वाले
  44. सर्वेश्वर – सभी के ईश्वर
  45. परब्रह्म – सबसे बड़े परमात्मा
  46. करुणासिंधु – करुणा के सागर
  47. प्रेममय – प्रेम से परिपूर्ण
  48. विष्णु – पालन करने वाले
  49. शांतिदायक – शांति प्रदान करने वाले
  50. चरणकमलदास – चरण कमल में शरण देने वाले
  51. स्वयंभगवान – स्वयं भगवान
  52. दयानिधि – दया के भंडार
  53. सर्वग्य – जो सब कुछ जानते हैं
  54. अविनाशी – जिनका कभी नाश नहीं होता
  55. लीलामय – लीलाओं से परिपूर्ण
  56. नवनीतचोर – माखन चोरी करने वाले
  57. बंसीवाला – बांसुरी बजाने वाले
  58. विष्वमूर्ति – संपूर्ण ब्रह्मांड जिनमें समाया है
  59. करुणाकर – कृपा करने वाले
  60. नित्यनंद – शाश्वत आनंद देने वाले
  61. गोपकांत – गोपियों के प्रिय
  62. शरणागतपालक – शरणागत की रक्षा करने वाले
  63. धर्मसंस्थापक – धर्म की स्थापना करने वाले
  64. अर्जुनसखा – अर्जुन के मित्र
  65. सत्यप्रिय – सत्य से प्रेम करने वाले
  66. भक्तवत्सल – भक्तों पर कृपा करने वाले
  67. विजय – सदा विजयी रहने वाले
  68. अतुलनीय – जिनकी तुलना नहीं की जा सकती
  69. महायोगी – महान योगी
  70. सर्वसमर्थ – सब कुछ करने में समर्थ
  71. चक्रपाणि – चक्र धारण करने वाले
  72. लक्ष्मीनाथ – देवी लक्ष्मी के स्वामी
  73. सर्वसाक्षी – सबके गवाह
  74. दीनबंधु – दीन-दुखियों के मित्र
  75. नित्यमंगल – सदा मंगलमय
  76. सत्यसंध – सत्य के लिए प्रतिबद्ध
  77. श्रीधर – श्री (लक्ष्मी) को धारण करने वाले
  78. वेदव्यास – वेदों के ज्ञाता
  79. यशस्वी – असीम यशस्वी
  80. महादेवप्रिय – महादेव (शिव) को प्रिय
  81. नवयुवक – सदा युवा
  82. चंचलदृष्टि – चंचल नेत्रों वाले
  83. निर्मल – पवित्र
  84. अद्वितीय – जिनका कोई दूसरा नहीं
  85. श्रीवल्लभ – श्री (लक्ष्मी) के प्रिय
  86. कौस्तुभधारी – कौस्तुभ मणि धारण करने वाले
  87. सत्यरूप – सत्यस्वरूप
  88. प्राणनाथ – सभी प्राणियों के स्वामी
  89. अक्षर – अविनाशी
  90. गोचारणप्रिय – गौचारण में रुचि रखने वाले
  91. महामायावी – महाशक्ति से युक्त
  92. सर्वशक्तिमान – अपार शक्ति वाले
  93. सर्वात्मा – सभी आत्माओं में स्थित
  94. जगद्गुरु – संपूर्ण जगत के गुरु
  95. निर्विकार – जिनमें कोई दोष नहीं
  96. द्वैपायनप्रिय – वेद व्यास के प्रिय
  97. भानुतेजस – सूर्य के समान तेजस्वी
  98. स्वर्गीय – स्वर्ग के समान दिव्य
  99. त्रिकालज्ञ – तीनों कालों के ज्ञाता
  100. पद्मनाभ – नाभि से कमल उत्पन्न करने वाले
  101. सर्वज्ञ – सर्वज्ञानी
  102. कर्मफलदाता – कर्मों का फल देने वाले
  103. नित्यानंदकंद – सदा आनंद देने वाले
  104. सर्वलोकमहेश्वर – सभी लोकों के स्वामी
  105. कालचक्रनियंता – कालचक्र के नियंत्रक
  106. प्रभु – सभी के स्वामी
  107. दीनदयालु – दीनों पर दया करने वाले
  108. जय श्रीकृष्ण – सदा विजयश्री वाले

भगवान श्रीकृष्ण की प्रमुख लीलाएँ

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में असंख्य अद्भुत लीलाएँ कीं, जो भक्तों के लिए प्रेरणा और भक्ति का स्रोत हैं। उनकी लीलाएँ बचपन से लेकर महाभारत तक फैली हुई हैं। आइए, उनकी कुछ प्रमुख लीलाओं के बारे में जानते हैं:

1. जन्म लीला (कृष्ण जन्माष्टमी)

Krishna Janmashtami

श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ। कंस ने उनकी माता देवकी और पिता वसुदेव को बंदी बना रखा था। जब कृष्ण का जन्म हुआ, तो जेल के ताले स्वयं खुल गए, पहरेदार सो गए, और वसुदेव उन्हें टोकरी में रखकर यमुना पार गोकुल ले गए। वहाँ वे यशोदा और नंद बाबा के घर पलने लगे।

2. पूतना वध

कंस ने बालक कृष्ण को मारने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा। उसने सुंदर स्त्री का रूप धारण कर गोकुल में प्रवेश किया और बालक कृष्ण को विषैला दूध पिलाने का प्रयास किया। लेकिन श्रीकृष्ण ने उसकी छाती से अमृत रूप में उसका प्राण ही निकाल लिया और उसका उद्धार कर दिया।

3. माखन चोर लीला

गोकुल में श्रीकृष्ण को माखन बहुत प्रिय था। वे अपने सखाओं के साथ गोपियों के घर से माखन चुराकर खाते थे। जब माता यशोदा ने उन्हें पकड़ लिया, तो उन्होंने अपनी भोली सूरत से उन्हें मोहित कर दिया। इसी कारण वे “माखनचोर” और “नवनीतचोर” कहलाते हैं।

4. उखल बंधन लीला (दमोदर लीला)

एक दिन श्रीकृष्ण माखन चुराते हुए पकड़े गए, तो माता यशोदा ने उन्हें ऊखल (ओखली) से बांध दिया। लेकिन उनकी अलौकिक शक्ति के कारण उन्होंने यमलार्जुन वृक्ष को गिराकर उसमें फंसे दो गंधर्वों (नलकूबर और मणिग्रीव) का उद्धार किया। इसलिए उन्हें “दामोदर” भी कहा जाता है।

5. कालिया नाग का वध

यमुना नदी में कालिया नामक नाग विष फैलाकर सभी को परेशान कर रहा था। श्रीकृष्ण ने नदी में कूदकर उस नाग को परास्त किया और उसके फणों पर नृत्य किया। नाग ने क्षमा मांगी और श्रीकृष्ण के चरणों में शरण ली।

Krishna

6. गोवर्धन पर्वत उठाना

गोकुलवासी इंद्र की पूजा करते थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। इससे क्रोधित होकर इंद्र ने मूसलधार बारिश शुरू कर दी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सभी को शरण दी। इस कारण वे “गोवर्धनधारी” कहलाए।

7. रासलीला और गोपियों संग प्रेम

श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों के साथ रासलीला रचाई। उन्होंने प्रत्येक गोपी के साथ अलग-अलग रूप में नृत्य किया, जिससे सबको लगा कि कृष्ण केवल उनके साथ हैं। यह लीला प्रेम और भक्ति का सर्वोच्च उदाहरण है।

8. कंस वध

कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए कई राक्षस भेजे, लेकिन सभी असफल रहे। जब कृष्ण युवा हुए, तो वे मथुरा गए और कंस का वध करके अपने माता-पिता को बंदीगृह से मुक्त कराया।

9. सुदामा संग मित्रता

भगवान श्रीकृष्ण का बाल्यकाल के मित्र सुदामा जब द्वारका पहुंचे, तो उन्होंने अपनी विपन्न अवस्था में श्रीकृष्ण को तंदुल (चावल) भेंट किए। श्रीकृष्ण ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपार धन-संपत्ति प्रदान कर दी।

10. महाभारत और गीता उपदेश

महाभारत युद्ध में अर्जुन को मोह हो गया था। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया और कर्मयोग, भक्ति और ज्ञानयोग का महत्व बताया। वे अर्जुन के सारथी बने और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध में उनकी सहायता की।

11. शिशुपाल वध

शिशुपाल, जो श्रीकृष्ण का अपमान करता रहता था, को भगवान ने 100 गलतियाँ करने का अवसर दिया। लेकिन जब उसने सीमा पार की, तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया।

12. द्वारका नगरी की स्थापना

मथुरा पर आक्रमण बढ़ने के कारण श्रीकृष्ण ने समुद्र के किनारे एक नई नगरी बसाई, जिसे “द्वारका” कहा जाता है। यह नगर सोने, चांदी और रत्नों से सुसज्जित था।

Dwarka City

13. नरकासुर वध और 16,100 कन्याओं का उद्धार

नरकासुर नामक असुर ने 16,100 कन्याओं को बंदी बना रखा था। श्रीकृष्ण ने उसका वध कर सभी कन्याओं को समाज में सम्मान दिलाने के लिए उनसे विवाह कर लिया।

14. विदुर के घर भोजन

जब श्रीकृष्ण हस्तिनापुर गए, तो उन्होंने राजा के महल में भोजन करने की बजाय अपने प्रिय भक्त विदुर के घर सूखी साग-भाजी का भोजन ग्रहण किया, क्योंकि वहाँ प्रेम था।

15. कौरव सभा में द्रौपदी की लाज बचाना

दुर्योधन ने द्रौपदी का अपमान करने के लिए उसे भरी सभा में खींचा, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से उनकी लाज बचाई और वस्त्र बढ़ाते रहे।

16. यदुवंश का अंत और पृथ्वी से प्रस्थान

जब समय पूरा हुआ, तो भगवान श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के हाथों तीर लगने से लीला समाप्त की और अपने धाम वापस चले गए।

निष्कर्ष

भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ केवल कहानियाँ नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक और जीवन के सत्य को समझाने वाले संदेश हैं। उनका जीवन प्रेम, करुणा, भक्ति, नीति और धर्म का उदाहरण है।

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