बाघ
Tiger या व्याघ्र जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनधारी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है।
यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है। इसके शरीर का रंग लाल और पीला का मिश्रण है। इस पर काले रंग की धारियाँ पायी जाती हैं।
वक्ष के भीतरी भाग और पाँव का रंग सफेद होता है। Tiger १३ फीट लम्बा और ३०० किलो वजनी हो सकता है। बाघ का वैज्ञानिक नाम “पेंथेरा टिग्रिस” है। यह भारत का राष्ट्रीय प्राणी भी है।
जीवन शैली
बाघ को वन, दलदली क्षेत्र तथा घास के मैदानों के पास रहना पसंद है। आहार मुख्य रूप से सांभर, चीतल, जंगली सूअर, भैंसे जंगली हिरण, गौर और मनुष्य के पालतू पशु हैं।
अपने बड़े वजन और ताकत के अलावा बाघ अपनी धारियों से पहचाना जा सकता है। बाघ की सुनने, सूँघने और देखने की क्षमता तीव्र होती है।
बाघ अक्सर पीछे से हमला करता है। धारीदार शरीर के कारण शिकार का पीछा करते समय वह झाड़ियों के बीच इस प्रकार छिपा रहता है कि शिकार उसे देख ही नहीं पाता। बाघ बड़ी एकाग्रता और धीरज से शिकार करता है। इसलिए शिकार को लंबी दूरी तक पीछा करना उसके बस की बात नहीं है। वह छिपकर शिकार के बहुत निकट तक पहुँचता है और फिर एक दम से उस पर कूद पड़ता है। यदि कुछ गज की दूरी में ही शिकार को दबोच न सका, तो वह उसे छोड़ देता है। कुदरत ने बाघ की हर चाल की तोड़ शिकार बननेवाले प्राणियों को दी है इसलिए उसे औसतन केवल हर बीस प्रयासों में एक बार ही सफलता हाथ लगती है,हर बाघ का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है।
केवल प्रजननकाल में नर मादा इकट्ठा होते हैं। लगभग साढ़े तीन महीने का गर्भाधान काल होता है और एक बार में २-३ शावक जन्म लेते हैं। बाघिन अपने बच्चे के साथ रहती है। Tiger के बच्चे शिकार पकड़ने की कला अपनी माँ से सीखते हैं। ढाई वर्ष के बाद ये स्वतंत्र रहने लगते हैं। इसकी आयु लगभग १९ वर्ष होती है।
इतिहास
भारतीय Tiger अपने प्राकृतिक आवास में बाघ के पूर्वजों के चीन में रहने के निशान मिले हैं। हाल ही में मिले बाघ की एक विलुप्त उप प्रजाति के डीएनए से पता चला है कि बाघ के पूर्वज मध्य चीन से भारत आए थे। वे जिस रास्ते से भारत आए थे कई शताब्दियों बाद इसी रास्ते को रेशम मार्ग (सिल्क रूट) के नाम से जाना गया। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी
और अमेरिका में एनसीआई लेबोरेट्री ऑफ जीनोमिक डाइवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक १९७० में विलुप्त हो जाने वाले मध्य एशिया के कैस्पियन बाघ व रूस के सुदूर पूर्व में मिलने वाले साइबेरियाई या एमुर बाघ एक जैसे हैं। इस खोज से यह पता चलता है कि किस तरह बाघ मध्य एशिया और रूस पहुंचे। इसका मतलब है कि कैस्पियन बाघ कभी विलुप्त नहीं हुए। अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि ४० साल पहले विलुप्त हो गए कैस्पियन बाघों का ठीक से अध्ययन नहीं किया जा सका था। इसलिए हमें डीएनए नमूनों को फिर से प्राप्त करना पड़ा। एक अन्य शोधकर्ता डॉ॰ नाबी यामागुची ने बताया कि मध्य एशिया जाने के लिए कैस्पियन बाघों द्वारा अपनाया गया मार्ग हमेशा एक पहेली माना जाता रहा। क्योंकि मध्य एशियाई बाघ तिब्बत के पठारी बाघों से अलग नजर आते हैं। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि लगभग १० हजार साल पहले Tiger चीन के संकरे गांसु गलियारे से गुजरकर भारत पहुंचे थे ,और हजारों साल बाद यही मार्ग व्यापारिक सिल्क रूट के नाम से विख्यात हुआ।
सफ़ेद बाघ
सफ़ेद बाघ एक ऐसा बाघ है जिसका प्रतिसारी पित्रैक (रिसेसिव पित्रैक) इसे हल्का रंग प्रदान करता है। एक अन्य आनुवंशिक अभिलक्षण Tiger की धारियों को बहुत हल्का रंग प्रदान करता है; इस प्रकार के सफ़ेद बाघ को बर्फ-सा सफ़ेद या “शुद्ध सफे़द” कहते हैं। सफ़ेद पित्रैक विहीन नारंगी रंग के बाघों की तुलना में सफ़ेद बाघ जन्म के और पूर्ण
वयस्क हो जाने पर, दोनों ही समय आकार में बड़े होते हैं।अपने असामान्य रंगत के बावज़ूद उन्हें जंगल में अपने इस बड़े आकार से फायदा हो सकता है। नारंगी रंग के विषमयुग्मजी बाघों का आकार भी नारंगी रंग के अन्य बाघों की तुलना में बड़ा हो सकता है।
सफ़ेद बाघों को बंगाल टाइगर की उप-प्रजाति में बखूबी शामिल कर लिया गया है जो रॉयल बंगाल या इंडियन टाइगर (पैन्थेरा टाइग्रिस टाइग्रिस या पी. टी. बेंगालेंसिस) के नाम से मशहूर है, सफ़ेद बाघ कैद साइबेरियन टाइगर (पैन्थेरा टाइग्रिस अल्टैका) में भी देखने को मिल सकती हैं और इतिहास बन चुकी कई अन्य उपप्रजातियों में भी इनके पाए जाने की खबर हो. सफ़ेद रोमचर्म का बंगाल या इंडियन उपप्रजातियों से बहुत गहरा सम्बन्ध है। मौज़ूदा समय में दुनिया भर में सैंकड़ों सफ़ेद बाघ कैद किए गए हैं, इनमें से 100 भारत में हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है।
बंगाल बाघ
रॉयल बंगाल Tiger या बंगाल बाघ, बाघ की आठ बड़ी प्रजातियों में से एक है, जो कि भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में भी पाई जाती है। बंगाल के शेर, या रॉयल बंगाल बाघ भारत, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में पाए जाने वाले बाघो की एक उप प्रजाति है।रॉयल बंगाल टाइगर या बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु है। इसे यह सम्मान इसकी खूबसूरती
और ताकत को देखते हुए दिया गया है। जंगल का राजा कहलाने वाला पेंथेरा टाइग्रिस भारत की शान है। बाघ यह उप-प्रजाति भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार और दक्षिण तिब्बत के तराई वाले जंगलों में पाई जाती है। बंगाल का सुंदरबन जंगल संकट में है क्योकि इसका प्राकृतिक आवास है लेकिन कटते जंगल और बढ़ते शिकार की वजह से यह
वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड एंड ग्लोबल टाइगर फोरम के मुताबिक, दुनिया के 70 फीसदी बाघ भारत में ही रहते हैं। 2006 में भारत में 1411 बाघ थे, जो 2010 में 1706 थे।
आखिरी गणना 2014 में हुई थी, जिसमें 2226 बंगाल टाइगर पाए गए।नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) के अधिकारियों का अनुमान है कि वर्तमान में देश में 3000 से ज्यादा टाइगर हैं। शिकार लाचार मांसाहारी होते हैं। चीतल, सांभर, गौर, भैंस पानी, नील गाय का शिकार करते हैं। बंगाल टाइगर भी इस तरह के रूप में अन्य परभक्षी, ले जाना है ज्ञात किया गया तेंदुए, भेड़िये, सियार, लोमड़ी, मगरमच्छ, एशियाई काला भालू, आलस, भालू और शिकार के रूप में हालांकि इन शिकारियों आमतौर पर है बाघ आहार का एक हिस्सा नहीं हैं।
प्रोजेक्ट टाईगर
(बाघ बचाओ परियोजना) की शुरुआत ७ अप्रैल 1973 को हुई थी। इसके अन्तर्गत आरम्भ में ९ बाघ अभयारण्य बनाए गए थे। आज इनकी संख्या बढ़कर 52 हो गई है। सरकारी आकडों के अनुसार 2006 में १४११ बाघ बचे हुए है,और 2010 में जंगली बाघों की संख्या 1701 हो गयी है। 2226 बाघ 2014 में प्राकृतिक वातावरण में थे।
यह केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित परियोजना है। अखिल भारतीय बाघ रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत में बाघों की संख्या 2967 है ।
वैज्ञानिक, आर्थिक, सौंदर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से भारत में बाघों की वास्तविक आबादी को बरकरार रखने के लिए तथा हमेशा के लिए लोगों की शिक्षा व मनोरंजन के हेतु राष्ट्रीय धरोहर के रूप में इसके जैविक महत्व के क्षेत्रों को परिरक्षित रखने के उद्देश्य से केंद्र द्वारा प्रायोजित बाघ परियोजना वर्ष १९७३ में शुरू की
गई थी।राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण तथा बाघ व अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो के गठन संबंधी प्रावधानों की व्यवस्था करने के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम १९७२ में संशोधन किया गया। बाघ अभयारण्य के भीतर अपराध के मामलों में सजा को और कड़ा किया गया। वन्यजीव अपराध में प्रयुक्त किसी भी उपकरण, वाहन अथवा शस्त्र को जब्त करने की व्यवस्था भी अधिनियम में की गई है। सेवानिवृत्त सैनिकों और स्थानीय कार्यबल तैनात करके १७ Tiger अभ्यारण्यों को शत-प्रतिशत अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की गई। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय संचालन समिति का गठन किया गया और बाघ संरक्षण फाउंडेशन की स्थापना की गई।
वन्यजीवों के अवैध व्यापार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए पुलिस, वन, सीमा शुल्क और अन्य प्रवर्तन एजेंसियों के अधिकारियों से युक्त एक बहुविषयी Tiger तथा अन्य संकटग्रस्त प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो (वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो), की स्थापना ६-६-२००७ को की गई थी।जिनमें चल रहे कार्यकलापों के साथ ही बाघ अभ्यारण्य के मध्य या संवेदनशील क्षेत्र में रहने वाले लोगों के संबंधित ग्राम पुनर्पहचान/पुनर्वास पैकेज (एक लाख रुपए प्रति परिवार से दस लाख रुपए प्रति परिवार) को धन सहायता देने, परंपरागत शिकार और मुख्यधारा में आय अर्जित करने तथा बाघ अभ्यारण्य से बाहर के वनों में वन्यजीव संबंधी चीता और बाघों के क्षेत्रों में किसी भी छेड़छाड़ को रोकने संबंधी रक्षात्मक रणनीति को अपना कर बाघ कोरीडोर संरक्षण का सहारा लेते हुए समुदायों के पुनर्स्थापना संबंधी कार्यकलाप शामिल हैं।
बाघों का अनुमान लगाने के लिए एक वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया। इस नये तरीके से अनुमानतया ९३६९७ कि॰मी॰ क्षेत्र को बाघों के लिए संरक्षित रखा गया है।