नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। यह पर्व मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का प्रतीक है। नवरात्रि का पांचवा दिन देवी स्कंदमाता को समर्पित होता है। देवी स्कंदमाता को संतान सुख, मोक्ष और शांति प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। इस लेख में हम देवी स्कंदमाता के स्वरूप, उनकी पूजा विधि, मंत्र, आरती और अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
देवी स्कंदमाता का स्वरूप
देवी स्कंदमाता, भगवान कार्तिकेय की माता हैं, जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है। उनका स्वरूप अत्यंत सौम्य और कल्याणकारी है। देवी स्कंदमाता शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं होती हैं। उनके दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से वे स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं, जबकि नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प धारण किए हुए हैं। उनकी अन्य दो भुजाओं में भी कमल का पुष्प होता है। देवी का यह स्वरूप अत्यंत मनोहारी और भक्तों के लिए कल्याणकारी माना जाता है।
स्कंदमाता का महत्व
देवी स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों को संतान सुख प्राप्त होता है। वे भक्तों के लिए मोक्ष का द्वार खोलने वाली मानी जाती हैं। उनकी पूजा से सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होता है और व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। देवी स्कंदमाता की कृपा से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और उन्हें देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
स्कंदमाता की पूजा विधि
देवी स्कंदमाता की पूजा विधि सरल है, लेकिन इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ करना आवश्यक है। यहां पूजा की विस्तृत विधि दी गई है:
- स्नान और शुद्धि: सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
- व्रत और संकल्प: व्रत का संकल्प लें और देवी का ध्यान करें।
- मूर्ति या चित्र की स्थापना: देवी स्कंदमाता की मूर्ति या चित्र को पूजास्थल पर स्थापित करें।
- पूजन सामग्री: पुष्प, धूप, दीप, नारियल, फल, मिठाई, और पान आदि पूजन सामग्री तैयार करें।
- मंत्र जाप: देवी स्कंदमाता के मंत्रों का जाप करें।
- आरती: अंत में देवी की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
देवी स्कंदमाता के मंत्र
पूजा के दौरान देवी स्कंदमाता के मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यहां कुछ प्रमुख मंत्र दिए गए हैं:
ध्यान मंत्र
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥
आरती
पांचवां नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं
हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं
कई नामों से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कहीं पहाड़ों पर है डेरा
कई शहरों में तेरा बसेरा
हर मंदिर में तेरे नजारे
गुण गाए तेरे भगत प्यारे
भक्ति अपनी मुझे दिला दो
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इंद्र आदि देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए
तुम ही खंडा हाथ उठाए
दास को सदा बचाने आई
‘चमन’ की आस पुरानी आई
स्कंदमाता से जुड़ी कुछ प्रमुख कथाएं
कार्तिकेय की उत्पत्ति
स्कंदमाता से जुड़ी एक प्रमुख कथा भगवान कार्तिकेय की उत्पत्ति से संबंधित है। एक बार तारकासुर नामक असुर ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया। देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी। भगवान शिव और देवी पार्वती के संतान के रूप में भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने तारकासुर का वध किया।
स्वर्ग की रक्षा
स्कंदमाता की एक और कथा स्वर्ग की रक्षा से जुड़ी है। एक बार असुरों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवी स्कंदमाता ने अपने पुत्र कार्तिकेय को स्वर्ग की रक्षा के लिए भेजा और उन्होंने असुरों का विनाश कर स्वर्ग को सुरक्षित किया।
FAQs
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स्कंदमाता कौन हैं?
देवी स्कंदमाता, भगवान कार्तिकेय की माता हैं। वे शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं होती हैं। -
स्कंदमाता की पूजा कब की जाती है?
स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है। -
स्कंदमाता की पूजा क्यों महत्वपूर्ण है?
स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों को संतान सुख प्राप्त होता है और सभी प्रकार की बाधाओं का नाश होता है। -
स्कंदमाता का ध्यान मंत्र क्या है?
स्कंदमाता का ध्यान मंत्र इस प्रकार है:
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।। -
स्कंदमाता की कथा क्या है?
स्कंदमाता से जुड़ी कई कथाएं हैं, जिनमें प्रमुख कथा भगवान कार्तिकेय की उत्पत्ति और स्वर्ग की रक्षा से संबंधित हैं।
नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का पर्व विशेष रूप से मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के लिए मनाया जाता है। हर दिन मां के एक अलग रूप की पूजा की जाती है, जिससे भक्तों को विभिन्न प्रकार की सिद्धियों और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति, धर्म और समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
धार्मिक आस्था
नवरात्रि के दौरान भक्तगण व्रत रखते हैं और मां दुर्गा की आराधना करते हैं। यह पर्व धार्मिक आस्था का प्रतीक है और भक्तों को अपनी आस्था को और मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।
संस्कृति और परंपरा
नवरात्रि का पर्व भारतीय संस्कृति और परंपराओं का उत्सव है। इस पर्व के माध्यम से लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखते हैं और उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाते हैं।
सामाजिक एकता
नवरात्रि के दौरान सामूहिक पूजा और उत्सव मनाने से समाज में एकता और सद्भावना का विकास होता है। लोग एक साथ मिलकर इस पर्व को मनाते हैं, जिससे सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश फैलता है।
निष्कर्ष
नवरात्रि का पांचवां दिन देवी स्कंदमाता को समर्पित होता है। उनकी पूजा और आराधना से भक्तों को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिलता है। इस दिन की पूजा विधि, मंत्र, आरती और स्तोत्र पाठ करने से मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नवरात्रि के इस विशेष दिन पर देवी स्कंदमाता की पूजा कर हम अपने जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर सकते हैं। देवी स्कंदमाता की कृपा से हमारे सभी कष्ट दूर होते हैं और हमें जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
नवरात्रि के अन्य दिन
नवरात्रि के प्रत्येक दिन देवी दुर्गा के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। पहले दिन देवी शैलपुत्री की पूजा होती है, उसके बाद:
- Navratri 1st Day – पहले दिन: देवी शैलपुत्री की पूजा
- Navratri 2nd Day – दूसरे दिन: देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा
- Navratri 3rd Day – तीसरे दिन: देवी चंद्रघंटा की पूजा
- Navratri 4th Day – चौथे दिन: देवी कुष्मांडा की पूजा
- 6th Day of Navratri – छठे दिन: देवी कात्यायनी की पूजा
- 7th Day of Navratri – सातवे दिन: देवी कालरात्रि की पूजा
- 8th Day of Navratri – आठवे दिन: देवी महागौरी की पूजा
- 9th Day of Navratri – नौवें दिन: देवी सिद्धिदात्री की पूजा
इन सभी दिनों की पूजा विधि, मंत्र और आरती अलग-अलग होती हैं, और इनकी पूजा करने से अलग-अलग फल की प्राप्ति होती है।