HomeNewsNational21 तोपों की सलामी का इतिहास और राजकीय सम्मान की प्रक्रिया

21 तोपों की सलामी का इतिहास और राजकीय सम्मान की प्रक्रिया

क्या आपको ध्यान है जब रामनाथ कोविंद भारत के राष्ट्रपति बने थे और जब वह पहली बार राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे तो 21 तोपों की सलामी दी गई थी. भारत में गणतंत्र दिवस हो, स्वतंत्रता दिवस हो या अन्य महत्वपूर्ण राष्ट्रीय दिवस 21 तोपों की सलामी से ही दिन की शुरुआत होती है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी जी के निधन पर राजकीय सम्मान दिया गया था.

15 अगस्त 1947 में देश को अंग्रेजों से आजादी मिली थी और 26 जनवरी, 1950 को भारत एक गणतंत्र देश बना था. यानी चुनाव के जरिये यहां की जनता तय करेगी की उनका राज्याध्यक्ष कौन होगा. लोगों को कई मौलिक अधिकार प्राप्त होंगे. ये हम सब जानते हैं कि गणतंत्र दिवस को खास बनाता है उस दिन मनाया जाने वाला जश्न जिस पर हर भारतीय को गर्व होता है. इस दिन राष्ट्रपति द्वारा तिरंगा फहराया जाता है, 21 तोपों की सलामी दी जाती है जो जश्न में चार-चांद लगा देती है. इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं कि, 21 तोपों की सलामी किसे और क्यों दी जाती है, राजकीय सम्मान क्या होता है इत्यादि.

राजकीय सम्मान क्या होता है?

राजकीय सम्मान में शव को तिरंगे से लपेटा जाता है. जिस व्यक्ति को राजकीय सम्मान देने का फैसला किया जाता है उनके अंतिम सफर का पूरा इंतजाम राज्य या केंद्र सरकार की तरफ से किया जाता है. इसके अलावा बंदूकों से भी सलामी दी जाती है. हम आपको बता दें कि अंतिम संस्कार के दौरान राजकीय सम्मान पहले केवल वर्तमान और पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्रियों को  दिया जाता था. लेकिन अब इसके लिए कानून बदल गए हैं. राज्य सरकार ये तय कर सकती है कि किसे राजकीय सम्मान दिया जाना चाहिए. अब राजनीति, साहित्य, कानून, विज्ञान और कला के क्षेत्र में योगदान करने वाले शख्सियतों के निधन पर राजकीय सम्मान दिया जाने लगा है. राजकीय सम्मान से होने वाले अंतिम संस्कार के सारे बन्दोबस्त राज्य सरकार की तरफ से किया जाता है.

जिस दिवंगत को राजकीय सम्मान दिया जाता है उसके अंतिम संस्कार के दौरान उस दिन को राष्ट्रीय शोक के तौर पर घोषित कर दिया जाता है और भारत के ध्वज संहिता के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया जाता है. इस दौरान एक सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी जाती है. दिवंगत के पार्थिव शरीर को राष्ट्रीय ध्वज के ढक दिया जाता है और बंदूकों की सलामी भी दी जाती है.

21 तोपों की सलामी के पीछे का इतिहास

क्या आप जानते हैं कि अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और कैनेडा सहित दुनिया के लगभग सभी देशों में महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व सरकारी दिवसों की शुरुआत पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है. परन्तु क्या आपने सोचा है कि सलामी के लिए 21 तोपों का ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है.

तोपों को चलाने का इतिहास मध्ययुगीन शताब्दियों से शुरू हुआ, उस समय सेनाएं ही नहीं अपितु व्यापारी भी तोपें चलाते थे. हम आपको बता दें कि पहली बार 14वीं शताब्दी में तोपों को चलाने की परम्परा उस समय शुरू हुई जब कोई सेना समुद्री रास्ते से दूसरे देश जाती थी और जब वो तट पर पहुँचते थे तो तोपों को फायर करके बताते थे कि उनका उद्देश्य युद्ध करना नहीं है. जब व्यापारियों ने सेनाओं की इस परम्परा को देखा तो उन्होंने भी एक देश से दूसरे देश की यात्रा करने के दौरान तोपों को चलाने का काम शुरू कर दिया था. पराम्परा यह हो गई कि जब भी कोई व्यापारी किसी दूसरे देश पहुंचता या सेना किसी अन्य देश के तट पर पहुंचती तो तोपों को फायर करके यह संदेश दिया जाता था कि वह लड़ने के उद्देश्य से नहीं आए हैं. उस समय सेना और व्यापारियों की और से 7 तोपों को फायर किया जाता था परन्तु इसका कोई स्पष्ट कारण नहीं हैं कि 7 ही क्यों फायर किए जाते थे.

जैसे-जैसे विकास हुआ, समुद्री जहाज़ भी बड़े बनने लगे और फायर करने वाली तोपों की संख्या में भी वृद्धि हुई. 17वीं शताब्दी में पहली बार ब्रिटिश सेना ने तोपों को सरकारी स्तर पर चलाने का काम शुरू किया और तब इनकी संक्या 21 थी. उन्होंने शाही खानदान के सम्मान तोपों को चलाया था और संभावित रूप से इसी घटना के बाद दुनिया भर में सलामी देने और सरकारी खुशी मनाने के लए 21 तोपों की सलामी की रीति चल पड़ी.

क्या आप जानते हैं कि 18वीं शताब्दी में अमरीका ने इसे सरकारी रूप से लागू कर दिया था. पहली बार 1842 में अमेरिका में 21 तोपों की सलामी अनिवार्य कर दी गई थी और तकरीबन 40 साल बाद इस सलामी को राष्ट्रीय सलामी को सरकारी तौर पर लागू कर दिया गया. 18वीं से 19वीं शताब्दी के शुरू होने तक अमरीका और ब्रिटेन एक दूसरे के प्रतिनिधिमंडलों को तोपों की सलामी देते रहे और इसे सरकारी तौर पर मान्यता दे दी.

हालांकि, भारत में, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के माध्यम से इस परम्परा की शुरुआत हुई. किसे कितनी तोपों की सलामी दी जाएगी इसका एक नियम था. मसलन, ब्रिटिश सम्राट को 101 तोपों की सलामी दी जाती थी जबकि दूसरे राजाओं को 21 या 31 की. लेकिन फिर ब्रिटेन ने तय किया कि अंतर्राष्ट्रीय सलामी 21 तोपों की ही होनी चाहिए. आजादी से पहले भारत में राजाओं और जम्मू-कश्मीर जैसी रियासतों के प्रमुखों को 19 या 17 तोपों की सलामी दी जाती थी. भारत में अब गणतंत्र दिवस की परेड में, हर साल 21 तोपों को लगभग 2.25 सेकेंड के अंतराल पर फायर किया जाता है ताकि राष्ट्रीय गान के पूरे 52 सेकंड में प्रत्येक तीन राउंड में 7 तोपों को लगातार फायर किया जा सके.

राजकीय सम्मान किसे दिया जाता है?

हम आपको बता दें कि देश मे सबसे पहली बार राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार की घोषणा महात्मा गांधी के लिये की गयी थी. तब तक अंतिम संस्कार के राजकीय सम्मान का प्रोटोकॉल और दिशा निर्देश नहीं बने थे. 1950 में, पहलीं बार एक निर्देश बना था और तब यह सम्मान केवल प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रीगण, केन्द्रीय मंत्रिमंडल के वर्तमान और भूतपूर्व सदस्यगण, के लिये ही था. फिर इस सूची में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, उपसभापति राज्यसभा ( वर्तमान और भूतपूर्व ) भी जोड़े गए. इसके बाद राज्यो को अपने अपने राज्यों में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, और मंत्रिमंडल के सदस्यों ( वर्तमान और भूतपूर्व ) के अंतिम संस्कार को भी राजकीय सम्मान से करने की अनुमति दे दी गयी. बाद में इसमें एक प्रावधान ये भी जोड़ा गया कि उपरोक्त महानुभाओं के अतिरिक्त राज्य सरकार अपने विवेक से जिसे चाहे उसे यह सम्मान दे सकती है. इस विशेषाधिकार का प्रयोग मुख्यमंत्री अपने वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों की सलाह से करता है और फिर इसके आदेश सम्बंधित जिला मैजिस्ट्रेट और पुलिस प्रमुख को भेजे जाते हैं जो इसका अनुपालन करते हैं.

यानी राजनीति, साहित्यर, कानून, विज्ञान और कला के क्षेत्र में महत्वोपूर्ण योगदान देने वाले शख्स  को राजकीय सम्मािन दिया जा सकता है. इसके अलावा देश के नागरिक सम्माान (भारत रत्न, पद्म विभूषण और पद्म भूषण) पाने वाले व्यक्ति को भी ये सम्मान दिया जा सकता है. इसके लिए केंद्र या राज्य सरकार को सिफारिश करनी पड़ती है.

प्रधानमंत्री रहने के दौरान जवाहर लाल नेहरू (1964), लाल बहादुर शास्त्री (1966), इंदिरा गांधी (1984), राजीव गांधी (1991), मोरारजी देसाई (1995), चंद्रशेखर सिंह (2007), अटल बिहारी वाजपयी (2018) इत्यादि पूर्व प्रधानमंत्रियों को राजकीय सम्मान दिया गया. साथ ही राजनीतिक क्षेत्रों के अतिरिक्त जिन महत्वपूर्ण लोगों को यह सम्मान दिया गया वे हैं: मदर टेरेसा (1997), भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड (2008), गंगुबाई हंगल (2009), भीमसेन जोशी (2011), बाल ठाकरे (2012), सरबजीत सिंह (2013), वायुसेना के मार्शल अर्जुन सिंह (2017), शशि कपूर (2017), श्रीदेवी (2018), दादा जे पी वासवानी (2018).

आइये अंत में अध्ययन करते हैं की किसे कितने तोपों की सलामी दी जाती है?

– 21-तोपों की सलामी कई अवसरों पर भारत के राष्ट्रपति, सैन्य और  वरिष्ठ नेताओं के अंतिम संस्कार के दौरान दी जाती है.

– हाई रैंकिंग जनरलों (नेवल ऑपरेशंस के चीफ और आर्मी और एयरफोर्स के चीफ ऑफ स्टाफ) को 17 तोपों की सलामी देने का चलन है. मार्शल अर्जन सिंह भारतीय वायु सेना के शीर्ष अधिकारी रहे हैं. परंपरा के मुताबिक उन्हें 17 तोपों की सलामी दी गई.

– जब एक विदेशी प्रमुख भारत का दौरा करता है, तो राष्ट्रपति भवन में औपचारिक स्वागत किया जाता है और राज्य के मुखिया को भी सलामी दी जाती है.

उम्मीद करते हैं की अब आपको ज्ञात हो गया होगा कि 21 तोपों की सलामी का चलन भारत में कबसे और कैसे शुरू हुआ और किस-किसको ये सलामी दी जाती है. राजकीय सम्मान क्या होता है, इसकी क्या प्रक्रिया है इत्यादि के बारे में भी इस लेख में बताया गया है.

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