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द्रौपदी मुर्मू: भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति की जीवन यात्रा और योगदान

1. परिचय

द्रौपदी मुर्मू भारतीय राजनीति की एक ऐतिहासिक शख्सियत हैं, जो न केवल देश की 15वीं राष्ट्रपति बनीं, बल्कि पहली आदिवासी महिला भी हैं जिन्होंने यह पद संभाला। उनका जीवन संघर्षों, उपलब्धियों और आदिवासी समाज के उत्थान के लिए समर्पित रहा है। उनके नेतृत्व और योगदान ने आदिवासी समुदाय के विकास के लिए कई नए मार्ग खोले हैं। इस लेख में हम उनके जीवन, उनके राजनीतिक सफर, और समाज के प्रति उनके योगदान पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।

2. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को उड़ीसा (अब ओडिशा) के मायूबंज जिले के एक छोटे से गाँव, बैदापोसी में हुआ था। वे एक संथाल आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता बिरांची नारायण टुडू और उनके दादा गाँव के प्रमुख थे, जिनकी सामाजिक स्थिति और उनके कार्यों का द्रौपदी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

द्रौपदी ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव के स्कूल से प्राप्त की और बाद में भुवनेश्वर के रायरंगपुर कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। उनकी शैक्षिक यात्रा ने उन्हें समाज सेवा की ओर प्रेरित किया और यही शिक्षा उनके भविष्य की राजनीतिक सफलता की नींव बनी।

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3. करियर की शुरुआत और चुनौतियाँ

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, द्रौपदी मुर्मू ने सरकारी नौकरी की और शिक्षिका के रूप में कार्य किया। उन्होंने सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक और फिर ओडिशा के राज्य परिवहन विभाग में काम किया। उनका सरल और मेहनती स्वभाव उन्हें सामाजिक सेवा की ओर खींच लाया। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की।

1997 में, द्रौपदी मुर्मू रायरंगपुर नगर पंचायत की पार्षद चुनी गईं, और इसके बाद उन्होंने ओडिशा विधानसभा के सदस्य के रूप में काम किया। वे दो बार ओडिशा की मंत्री भी रहीं, और इस दौरान उन्होंने पशु संसाधन विकास और मत्स्य पालन जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला।

4. ओडिशा की राज्यपाल के रूप में भूमिका

2015 में, द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किया गया। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। राज्यपाल के रूप में उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों के विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने राज्य के दूरदराज़ इलाकों में विकास योजनाओं को लागू करने में अहम भूमिका निभाई।

उनकी भूमिका में विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के विकास और उनके अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्होंने महिला सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे उनका समाज में गहरा प्रभाव पड़ा।

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5. राष्ट्रपति पद का सफर

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ना भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना थी। 2022 में, उन्होंने 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि उन्होंने न केवल पहली आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में इतिहास रचा, बल्कि वे भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति भी बनीं।

उनके राष्ट्रपति बनने का भारतीय समाज, विशेषकर आदिवासी समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। राष्ट्रपति के रूप में उनके प्रमुख कार्यों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार, आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा, और पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया।

6. गहराई से विश्लेषण और उनके योगदान

द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्षों और असफलताओं से भरा रहा, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प ने उन्हें हर चुनौती से जीतने की ताकत दी। उन्होंने अपने जीवन में कई व्यक्तिगत त्रासदियों का सामना किया, जिनमें उनके पति और दो बेटों की असामयिक मृत्यु शामिल है। इसके बावजूद, उन्होंने अपने कर्तव्यों और समाज के प्रति अपने दायित्वों को पूरी निष्ठा से निभाया।

आदिवासी समाज के विकास में योगदान:
उनके राष्ट्रपति बनने के बाद, सरकार की कई योजनाओं और परियोजनाओं में आदिवासी समाज के विकास को प्राथमिकता दी गई। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा के विस्तार, और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार में विशेष भूमिका निभाई। इसके साथ ही, उन्होंने आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित रखने के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

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7. केस स्टडी: आदिवासी विकास और द्रौपदी मुर्मू की पहल

द्रौपदी मुर्मू के नेतृत्व में आदिवासी क्षेत्रों में शुरू की गई कई योजनाओं ने व्यापक रूप से लाभ पहुँचाया। उदाहरण के तौर पर, ओडिशा में आदिवासी क्षेत्रों में शैक्षिक संस्थानों की स्थापना ने न केवल शिक्षा के स्तर को ऊँचा किया, बल्कि आदिवासी बच्चों को बेहतर भविष्य की राह भी दिखाई।

उनके द्वारा शुरू की गई स्वास्थ्य सेवाओं की योजनाओं के परिणामस्वरूप, दूरदराज़ के इलाकों में चिकित्सा सुविधाओं की पहुँच बढ़ी, जिससे आदिवासी समाज के स्वास्थ्य स्तर में सुधार हुआ है।

8. विभिन्न दृष्टिकोण

विशेषज्ञ की राय:
विशेषज्ञों का मानना है कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद पर आसीन होना एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक बदलाव है। उन्होंने समाज के हाशिए पर रहने वाले आदिवासी समुदाय के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और उन्हें मुख्यधारा में लाने का काम किया।

समाज पर प्रभाव:
उनके राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समाज में जागरूकता और आत्मविश्वास बढ़ा है। यह एक संदेश था कि कोई भी कठिनाइयाँ आपको ऊँचाइयों तक पहुँचने से नहीं रोक सकतीं। इससे युवा आदिवासी पीढ़ी को प्रेरणा मिली है, और वे अब शिक्षा और विकास की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।

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9. भविष्यवाणी और निष्कर्ष

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद पर आसीन होना भारतीय राजनीति और समाज में एक मील का पत्थर है। उन्होंने आदिवासी समाज के उत्थान के लिए जो कार्य किए हैं, वह भविष्य में भी प्रभावी रहेंगे। उनके कार्यकाल में शुरू की गई योजनाएँ और परियोजनाएँ आदिवासी समुदाय को सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होंगी।

भविष्यवाणी:
आने वाले वर्षों में, उनके नेतृत्व में भारत में आदिवासी समुदाय का और अधिक सशक्तिकरण होगा। उनके राष्ट्रपति पद के दौरान उठाए गए कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करेंगे, और भारत के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका बनी रहेगी।

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FAQs

1. द्रौपदी मुर्मू कौन हैं?
द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति और पहली आदिवासी महिला हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति पद संभाला।

2. द्रौपदी मुर्मू का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उनका जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मायूबंज जिले के बैदापोसी गाँव में हुआ था।

3. द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक करियर कब शुरू हुआ?
उन्होंने 1997 में भारतीय जनता पार्टी से राजनीतिक करियर की शुरुआत की और रायरंगपुर नगर पंचायत की पार्षद बनीं।

4. वे ओडिशा की राज्यपाल कब बनीं?
2015 में, उन्हें ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

5. राष्ट्रपति पद पर उनके कार्यकाल में कौन-कौन सी प्रमुख पहल की गईं?
राष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया, साथ ही आदिवासी अधिकारों और संस्कृति की सुरक्षा के लिए कदम उठाए।

6. द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने का भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उनके राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समाज में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास बढ़ा है, और उनके नेतृत्व में आदिवासी विकास योजनाओं को अधिक प्राथमिकता मिली है।

7. द्रौपदी मुर्मू ने अपने व्यक्तिगत जीवन में कौन-कौन सी चुनौतियों का सामना किया?
उन्होंने अपने पति और दो बेटों की मृत्यु का सामना किया, लेकिन इन कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने समाज सेवा में अपनी भूमिका जारी रखी।

8. क्या द्रौपदी मुर्मू के नेतृत्व में आदिवासी समाज में सुधार हुआ है?
हां, उनके नेतृत्व में आदिवासी समाज के लिए कई विकासात्मक परियोजनाएँ शुरू की गईं, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे में सुधार हुआ है।

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